Book Title: Mahapurana Part 2
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 455
________________ 21 अँगरेजी टिप्पणियों का हिन्दी अनुवाद इन टिप्पणियों में सन्धियोंके सन्दर्भ रोमन अंकों में है, जब कि कवकों और पंक्तियोंके अरबिक अंकों 'टी' प्रभाचन्द्रके टिप्पणों की संकेतक है । XIX. भरतने, सम सोचा कि मैंने जो धन अर्जित किया है, उसका कोई उपयोग नहीं है, यदि मैं इसे योग्य व्यक्तियो नहीं देता, जो कि विशुद्धरूपसे ब्राह्मणके नामसे ज्ञात हैं। भरतके अनुसार ये ब्राह्मण में हैं, जो जिनेन्द्र भगवान् द्वारा बताये गये का पालन करते हैं। ऐसे व्यक्तियोंको उसने उदारतापूर्वक बड़ी मात्रार्थे तस्याति गई उनसे उसने ऋषभनाथसे पूछा एक दिन भरने रातके अन्तिम प्रहरमें बुरा सपना देखा । वह बहुत अधिक चिन्तित हो गया । और दूसरे दिन सवेरे ऋषभ जिनसे मिलने गया। प्रार्थना और भक्ति करनेके बाद, कि यह बताइये कि किस पुण्यकर्मसे आप ऋषभ तीर्थकर हुए, और भरत चक्रवर्ती, बाहुबलि वीर व्यक्ति, श्रेयांस दानवीर, और सोमप्रभ योग्य शासक हुए। ऋषभस्वामी ने उन्हें बताया कि किस प्रकार दुष्षमा काल आयेगा कि जब नैतिकता के सब मूल्य पूरी तरह बदल जाएँगे । B. बुरा स्वप्न । 1012-13 वे व्यास जैसे लोगोंको पूरे अधिकार दे देंगे। जो कि बीयर स्त्रीका पुत्र है, और gajarat, जो कि एक गधीका पुत्र है। व्यास, पराशर से सत्यवती के पुत्र बताये जाते हैं। परन्तु मैं इस बातके स्रोतका पता नहीं लगा सका कि दुर्वासाको गर्दभीका पुत्र क्यों कहा गया 12. पंचमजुषि मर XX. सबसे पहले भरत सृष्टिको रचना के विभिन्न सिद्धान्तोंका खण्डन करते हैं और बताते हैं-धरती पवन और पानी के तत्व है जिनसे विश्वकी रचना हुई और यह कि ये आरम्भ और अन्तसे रहित हैं। विश्वकी रमा न तो ब्रह्माने की है, और न विष्णु या महेश ने इस सृष्टिकै बीचमें मानवलीक स्थित है जो 'सिरियलोक' कहलाता है, जिसमें कई द्वीप और समुद्र हैं"। सुमेदपर्वतकी पविच विशामें गन्धिल देश हूँ। उसकी राजधानी बलका हूँ। वहाँ राजा अतिबल शासन करता था। उसकी रामी मनोहरा थी। उनका महावल नामका पुत्र हुआ। जैसे ही वह योवनको प्राप्त हुआ, अतिबलने उसे गद्दी पर बैठाकर संन्यास लेनेका निश्चय कर लिया। उसके बाद राजा महाबल शासन करने लगा। उसके चार मन्त्री में महामति, सम्भिन्नमति, सत्यमति मोर स्वयं । एक दिन स्वयंकुशने राजासे सांसारिक आनन्दको पर्पताके बारेमें कहा और उससे जैनधर्मके अनुसार पवित्र जीवन बितानेके लिए अनुशेष किया। तब महामतिने चार्वाक मतका समर्थन करते हुए; वारीर और बारमा एक होनेके सिद्धान्तका प्रतिपादन किया। स्वयं महामति सिद्धान्तका खण्डन किया । इम्मिग्नमति बीयोंके लणिकवाद के सिद्धान्तका समर्थन किया। स्वयंबुद्धने इस मतका भी लण्डन किया । जब सत्यमतिमे अपने माया सिद्धान्तका प्रतिपादन किया, स्वयंकुद्धने इस सिद्धान्तका भी चण्ड क्रिया ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463