Book Title: Mahapurana Part 2
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 436
________________ ३७. ६.३] हिन्यो अनुवाद ४१३ करनेवाले मदसे रहित, मोक्षकी आशामें लीन रहनेवाले, अविचल श्रुतरूपी सागरको पार करनेवाले, नग्न-अनासंग-निष्पाप, कोष्ठ बुद्धीश्वरोंको पदोंमें प्रणत करानेवाले, तेजमें ऋखिमों और आगसे भास्वर, पांच प्रकारके ज्ञानको प्राप्त करनेवाले, पदार्थ और उनके पर्यायोंको जाननेवाले, छह माह और एक वर्षमें उपवास करनेवाले वृक्षोंकी कोटरों और पहाड़ी कन्दराओंमें निवास करनेवाले, कामदेवके दपंको चूर-चूर करनेवाले, जलश्रेणी-तन्तु और आकाशमें विचरण करनेवाले, शत्रु-मित्र, कांच और कंचनमें समताभाव धारण करनेवाले, प्रासादमें रखे हुए दीपक समान निश्चल मनवाले, अजेय पर-सिद्धान्तवादियोंकी वाणीका अपहरण करनेवाले, पर्यकासनपर हाथ लम्बे कर बेठे हुए इन्द्रियोंके पक्षका नाश करनेवाले, भिक्षा में रत चौरासी मुनिवरोंको देखा। पत्ता-यह वह दिव्य मुनि सोमप्रभ हैं । यह वह मनको शान्त करनेवाले राजा श्रेयांस हैं। यह देखो सुलोचने, तुम्हारे पिता राजर्षि अकम्पन हैं ! यह देखो तुम्हारे एक हजार भाई हैं जो धर्मका रहस्य जानकर स्थित हैं । जिसने स्वयंवरमें सूर्यके समान दीप्तिवाले अकीतिको महायुद्ध में रुष्ट किया था, यह वह दुर्मर्षण नरवरेन्द्र सममाक्में स्थित मुनीन्द्र हो गया है । सम्यक्त्व और शुद्धिसे शोभित बुद्धिवाली ज्ञानके उद्गमसे रतिको नष्ट करनेवाली, अपनो स्तनरूपो स्थलोको एक वर्षसे बाच्छादित करने वाली, पापमलके अंकुरोंको नष्ट करनेवाली, प्रस्वेदमलसे विचित्र अंगसे गोचरी करनेवाली, पवित्र शोलरूपी जलके संग्रहको नदी, कानन और महोषरोंको घाटियों में निवास करनेवाली, बाह्मी और सुन्दरीको शरण लेनेवाली, संयम धारण करनेवाली, विद्यापरियों और मनुष्यनियोंको संख्या तीन लाख थी। जितनी आयिकाओंकी संस्था कही गयी है, उसमें पचास हजार अधिक और उतने ही लाखअर्थात् साढ़े तीन लाख बारह प्रकारके व्रतोंको धारण करनेवाले श्रावक थे। जीवमात्रको हिंसाकी धापत्ति नहीं देनेवाली वहाँ पाच लाख भाविकाएं पों। घत्ता-कागणिकर, बृहस्पति, नागराज भी संख्या गिनते हुए मनमें मूच्छित हो जाते हैं । उन्हें प्रणाम करते हुए देवों, दानवों और पशुओं की संख्या कौन समझ सकता है ।।५।। अत्यन्त तपे हुए सोनेके रंगके समान, अशोकवृक्षको छायामें विराजमान सभामण्डपमें जगत्पिताको देखकर, मानो जम्बूद्वीपके बीच में सुमेरुपर्वत हो, भवभ्रमणसे निवृत्तिको इच्छा रखने

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