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३६.९.१४]
हिन्दी अनुवाद
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चौरासी लाख हाथो, तेतीस हजार श्रेष्ठ रथ, छियानबे हजार रानियाँ, फुल-परम्पराके बत्तीस हबार राजा, मानाकारी और हाथ जोड़े हुए सोलह हजार देव उसे सिद्ध हुए। घरमें चोदह रल
और नौ निधिर्या सिद्ध हो गयीं। अनुकूल पथमें उसे एकछत्र भूमि प्राप्त थी। लोग कहते हैं .... ... .वि. पूर्द करार में जित, लोगो का निस्तार हो गया। तब सुहावतीने यह कीचड़ उछालनी
शुरू की कि नगरकी खदानोंसे जो धन निकलता है उसे यशस्वती अपने घरमें प्रविष्ट करा लेती है, लेकिन यशस्वतीके द्वारा संचित धन मृत्युके दिन एक पग भी उसके साथ नहीं जायेगा। भीषण मरघटमें उसे अकेले ही जलना होगा, दूसरे, कपड़ोंके साथ । लम्पट पुत्र-कलनसे क्या ?
पत्ता-तब मन्त्रीने कहा और यह गुरु वात प्रकट कर दी, इस प्रकार मत कहो। यशस्वतीको तीनों लोकोंमें श्रेष्ठ शीलवृत्तिको दोष मत लगाओ ||
यशस्वतीको कोखसे जिन भगवानका जन्म होगा, यशस्वतीका परम सौभाग्य होगा। यशस्वतीका यश संसारमें धूमेगा। यशस्वतीके चरणोंमें इन्द्र प्रणाम करेगा। यह जानकर कि गुणी दिव्य मुनीन्द्र छह माहमें होंगे। आशादानके सम्मानसे सम्मानित प्रो-ही-कीति वादि देविर्या सेवाकी सम्भावनासे आयीं। घरके आंगनमें धनकी वर्षा हुई। उसने सिंह, गज, सूर्य, समुद्र और जल आदि सोलह सपनोंको आवलि देखी। जिन्होंने करुणा की है, और जिनके चरण प्रचण्ड इन्द्रोंके द्वारा संस्तुत हैं, ऐसे जिन भगवान् देवीको देहमें स्थित हो गये । सुर, असुरों तथा विषधरों सहित भवनवासी और व्यन्तरोंने उसे प्रणाम किया। उस अवसरपर सुस्त्रावतीका मान-अहंकार च्युत हो गया, उसके मनमें अनन्त धर्मानन्द हुआ। सुखावतीने ईयासे रहित होकर, स्वयं आकर यशस्वतीको नमस्कार किया, और कहा-पूर्व दिशाका अनुकरण कौन दिशा कर सकती है ? क्या किसी दूसरी दिशामें सूर्यका उदय हो सकता है। हे आवरणीय, तुम्हारे बिना कोन स्त्री जिनवरको अपने उदरमें धारण कर सकती है।
पत्ता-कोषसे अन्धी, मैंने सम्बन्धको नहीं जानते हुए जो कठोर शब्दोंका प्रयोग किया उन्हें हे देवताओंकी प्रिप आदरणीये, आप क्षमा कर दें। मुन्न मूर्खाने बहुत बड़ा पाप किया था ।।९।।