Book Title: Mahapurana Part 2
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 420
________________ ३६.११.१२] हिन्दी अनुवाद ३९७ विलासिनी नामकी एक रंगश्री (नतंकी ) थी जो कमलसे उत्पन्न न होते हुए भी स्वयं लक्ष्मी थी। सेठने उसे जाते हुए देखा। जिसे कामवासना बढ़ रही है ऐसे उस सेठने रास्तेमें जाते हुए उससे पूछा-"अपने मुखचन्द्रसे दिशाओंको आलोकित करनेवाली तुम रोमांचित होकर नाचती हुई क्यों जा रही हो?" उसने सेठसे कहा-देवीके घरण-स्पर्शसे मेरी बारह वर्षको खांसी मिट गयो है, उसी प्रकार, जिस प्रकार जिनदेवके दर्शनसे लोगोंके पाप मिट जाते हैं। मेरा पृष्ठभाग मानो अमृतसे सिंचित हो। इसोसे मेरा शरीर रोमांचित है। यशस्वतोके पैरोंसे प्रगलित जलसे ज्वर और ग्रहभूत-पिशाचोंका नाश हो जाता है। वह धूमवेगा वैरिन विद्याधरो नष्ट हो गयो । और भी उस युवतीका पर भारी हो गया। उसके उदरसे युवराजका जन्म होगा, इसलिए एक दूसरीने उसे युवराज-पट्ट बांध दिया । तब माताने तीर्यकरको जन्म दिया। भयसे कामदेव पर गया। उसने अपना धनुष उतार लिया और तीर छिपा लिये। जिनवरके जन्मके समय कामदेवके लिए रक्षा नहीं रह जाती। देवोंके द्वारा जिनेन्द्र श्रेष्ठ सुमेरु पर्वतपर ले जाये गये, मैं जानता हूँ कि वह शिवलक्ष्मोरूपो कन्याके भर्ता हैं। ___ पत्ता- देवेन्द्र स्वयं स्नान कराता है, मन्दराचल बासन है, समुद्र शरीरके लिए कुण्ड है (जलपात्र है), स्नानगृह वही है जहां जिन स्नान करते हैं ऐसा कोई चतुर मनुष्य-गणधर आदि कहते हैं 11१०॥ ११ शाश्वत् सुखको छा रखनेवाले भवनवासी, व्यन्सर और कल्पवासी देवोंने जिनपतिका नाम गुणपाल रखा और लाकर यशस्वतीके लिए सौंप दिया। महासती सुखावतीके भी नौ माहमें एक और पुत्र हुआ। भोगवतीके साथ तथा अपने भाईके साथ वह विद्याधर रावाबोंमें अपनी आज्ञा स्थापित करनेके लिए अनुचरों, घोड़ों, गजों और रयों के साथ गया, मानो शत्रुस्पो हाथियोंके झुण्डपर सिंह टूट पड़ा हो। वह विजया पर्वतपर परिभ्रमण करते हुए विद्याधर राजाओंको धरतीका अपहरण करता है। वह सिद्धों और किन्नरोंको सिद्ध कर लेता है। उसके भयसे सूर्य कांपता है, जिसके घरमें परमात्माका जन्म हुआ है, उसकी गोद में लक्ष्मीका निवास अवश्य होगा। सैकड़ों कामभोगोंको भोगते हुए उसके तोस लाख वर्ष बीत गये। एक दिन जिन भगवानको वैराग्य उत्पन्न हो गया। लोकान्तिक देवोंने आकर उसे सम्बोधित किया। पत्ता-निर्धन और दुःखसे झुकी हुई कायावाले समस्त दीन-दुखियोंको मन दिया। फिर बादमें उसने क्षोणकषायवाठोंका गुणों से परिपूर्ण समस्त चारित्र स्वीकार कर लिया १११

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