Book Title: Mahapurana Part 2
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 426
________________ T हिन्दी अनुवाद १६ उसे देखकर वे हिमगिरि पर्वतपर आये, जहाँ सखी बिन्ध्यश्री देवी हुई थी, शरीर बलित, मणिमय भूषणोंवाली और सोधर्म स्वर्गकी विलासिनो । जहाँ एक योजनका कमल है, जिसके विमल कमलदल स्वर्णसे निर्मित है, जिसमें देवों में भी आश्चर्य उत्पन्न करनेवाला दस योजनका कमल माल है तथा सोनसे निर्मित एक गव्यूति प्रमाण नयो कणिका है, अरविन्द सरोवर में उस लक्ष्मीदेवीका एक कोश प्रमाण विमान है। उसे देखकर वे लोग आकाशतलपर चले । दोनों ही अपने मनमें पुलकित थे । गंगा और सिन्धु नदीके शिखरों को देखकर उनका सुगन्धित जल पोकर वे लोग शवरकुलसे सेवित मेखलावाले विजयार्थ पर्वतपर आये । वहाँपर जयकुमार के रूपरूपी कमलकी लम्पट एक विद्याधरी रास्ता रोककर बैठ गयी। वह कहती है कि यहांवर तीनों विश्वों को तोलनेवाला गान्धार पिंग नामका विद्याधर रहता है । ३६. १७.१३] ४०३. पत्ता - में उसकी कन्या हूँ। नवकमलके समान भुजाओंवाली तुम्हें देखते हुए जगसुन्दर कामदेवने प्रत्यंचापर तीर चढ़ाकर तथा अपने स्थानको लक्ष्य बनाकर मुझे विद्ध कर दिया है || १६ || q नमि विद्याधरकी गृहिणी में विश्व में तडित्मालिनी के नामसे प्रसिद्ध हूँ। हजारों विद्याओंको सम्पत्ति धारण करनेवाले विद्याधरोंके युद्धमें अजेय हूँ । है सुन्दर यदि तुम आज चाहते हो तो तुम्हारे लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं होगा ? यह सुनकर भरत के सेनापति जयकुमारने कहा"हे सुन्दरी, तुम मूढमति हो । है स्वैरचारिणी, मागसे हृद । है व्योमविहारिणी ! तू क्या कहती है ? परस्त्री मेरे लिए माता के समान है। जो वैतरणी नदी में प्रवेश कर सकता है वह अत्यन्त निर्धन तुम्हारा सेवन करे हे माता, मैं तुम्हारा पुत्र होता है ।" तब उस असतोने क्रुद्ध होकर पीले बालोंवाले निशाचरको भेजा, जो बालचन्द्रके समान दाढ़ोंवाला, नवमेव और अंजनके समान काला, चंचल जीभरूपी पल्लवके मुखवाला, भुजा समूहके समान आँखोंवाला, लम्बे घोणस सनिकी मेखलावाला, किल-किल शब्दसे कलकल करता हुआ । धत्ता- इन्द्रधनुष के विन्यासों, बिजलियोंके विलासों, स्थिर जलधारावाले मेघों तथा बड़े-बड़े सुभटोंके शरीरोंका भेदन करनेवाले नाना प्रकारके अनेक शस्त्रोंके द्वारा उसने उसे घेर लिया ||१७||

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