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२९. २८.१५]
हिन्दी अनुवाव
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अपने कुलके चन्द्र राजाके सिरपर गुरु, बालक और स्त्रीका पैर लगता है अन्यका नहीं। I. . . . "और गंभ यह जानकर कि क्रोधसे भरी हुई नियाके द्वारा तुम्हारे सिरपर लात मारा गया होगा,
उसे तुम्हें श्रेष्ठ नूपुरसे पूजना चाहिए। यह सुनकर राजाने सेठकी प्रशंसा की। धनवतीने केशराशिसे नीले कर्णमूलमें सफेद बाल देखा, मानो जिनधर्मका उपदेश कहते हुएके समान वृक्षारूपी दासीने पतिके बालको दषित कर दिया था। यह देखकर भव्य कबेरमित्र और दसरा समद्रद भी प्रवजित हो गया और सुमेरुपर्वत पर सुविशुद्ध मतिवाले सुधर्म मुनिके पास जाकर उनके अच्छे शिष्य बन गये । मरकर वे ब्रह्म स्वर्गमें बुद्धिसे महान् लोकान्तिक देव हुए। प्रियदत्ताने विपुलमति नामक मन्तिम चारण मुनीन्द्रको आहार कराया और बच्चेका विचारकर उसने पूछा-हे मुनिनाथ, मुझे दुर्ग्राह्य तप कब प्राप्त होगा? तब हायके अग्रभागको पांच दायों अंगुलियां और बायें हाथको कनिष्ठा बताकर वह आकाशमार्गसे चल दिये। तब सबसे छोटे कुबेर दयित सहित उसे समयके साथ पांच पुत्र हुए। वह सत्यदेव भी मरकर वही यह हुआ है, बद्धनेह और प्रिय ।
पत्ता-निष्पाप भरतको सन्तुष्ट करनेवाले जयसे सुलोचना कथा कहती है। प्रभासे विस्फुरित वह कुन्दपुष्पोंके समान दांतोंवाली वह शोभित है ॥२८|
इस प्रकार श्रेसठ महापुरुषोंके गुण-अलंकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित और महामण्य मरत द्वारा अनुमत महाकाम्पका जय महाराज सुलोचना-भव
स्मरण नामका उनतीसवाँ परिमच्छेद समास इक्षा ॥२९॥