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३३. ८.६] हिन्दी अनुवाद
३४७ हस-शावकके समान गतिवाली मेरो स्वामिनी सुखावती, जो जलक्रीड़ाके कामके लिए संकेतित विद्याधर कुमारियां यहां नहीं आयी हैं तथा भ्रमरसे चुम्बित गजोंपर अवलम्बित ध्वजाओंवाली वह कहीं और चली गयी है-वहाँ गयी है और मुझे तुम्हारे पास छोड़ा है । हे राजन् ! एक और गुप्त बात सुनिए कन्याके लिए ईष्या प्रदान करनेवाले वे दोनों विद्याधर निश्चय ही तुम्हारे साथ असामंजस्य करेंगे। यह जानकर उवंशीसे भी अधिक मेरी रानी सुखावतीने
पत्ता-विद्याधर राजा शत्रु है, इसलिए उनका ज्ञान नष्ट कर दिया और हे स्वामी ! इस अंगूठी के द्वारा तुम्हारा स्वरूप बदल दिया ॥६॥
हे महानुभाव ! जो-जो आता है, उसे अपने शरीरके समान तथा चन्द्रमाके समान पत यशसे युक्त बहन के रूप में अपने को सोचना और इस प्रकार समुद्रके समान गर्जनवाले दुष्टोंको प्रपंचित करना। इसी बीच जिसके अपने विमानमें तरह-तरहके ध्वज लगे हुए हैं, ऐसा अशनिवेग आया, और अपनी बहनका रूप देखकर तीव्र सूर्यके समान प्रवाहवाला वह आकाश-मार्गसे चला गया। वहाँपर दूसरे बहुत-से प्रचुर विद्याधर मी नहीं जान पाते हैं, और सब उसे मेरी बहन है मेरी बहन है, यह कहते हैं। तब एकने जिसने इस प्रवचनको जान लिया है, ऐसे कुसुमचक मालीने उस समय कहा कि सुपरिस्थितिको देखने में अभ्रान्त है तथा जो पेड़पर चढ़ा हुआ ऐसे उस नागरिकने जानेवाले गये विद्याधरोंसे कहा कि मैंने देखने योग्य चीजमें सुख उत्पन्न करनेवाले अपने नेत्रोंसे स्वयं देखा है कि वह कन्या बिना मुद्राके पुरुषरल है। मैं सच कहता हूंझूठ वचन नहीं बोलता । जो गुणवाद साधु, गम्भीर तथा चन्द्रमाक लिए राहुके समान शत्रु कहा जाता है और जो आगे चक्रवर्ती होगा निश्चयसे यह वही राजा श्रीपाछ है ।
पत्ता-धनुषकी डोरोके अग्रभागपर स्थित यह वही कामदेवका बाण है, जो स्त्रियोंके शरीरको सन्तप्त करता है ||७॥
आज हमने शत्रु पा लिया। अब यह कहाँ जायेगा ? वह कहाँका राजा है ? और कहाँ राज्य करता है ! यह कहकर विद्याधरोंने उसे उसी प्रकार घेर लिया, जैसे पुश्चरियोंने प्रियको घेर लिया हो। मानो मेघोंसे अवलम्बित सूर्यको किरणोंने, दिवसको घेर लिया है, मानो चन्दनके श्रेष्ठ वृक्षको सोने घेर लिया हो। और जबतक फड़कते हुए ओठोंवाले उन विद्याधरोसे वह आहत नहीं होता तबतक कमलोंके सरोवरको देखकर कि जिसमें हंसनियों के मुखों द्वारा हंस