Book Title: Mahapurana Part 2
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 402
________________ ३५.१३.६] हिन्दी अनुषाव ३७२ ___ उसे स्वर्ण सिंहासनपर बैठाया, उसने कहा-सुनो, यक्ष कुलमें उत्पन्न हुई मैं पद्मावती, है पुत्र! तुम्हारी हंसकी तरह चलनेवाली तुम्हारी माता थी । यह कहकर स्नेहको प्रकट करनेवाले हाथके स्पर्शसे बालकको सज्जित किया । उसको मुख, निद्रा और आलस्य नष्ट हो गया। उस सन्तुष्ट बारको उसने कहा--विविध प्रकारके किरणोंसे भरपूर गिरिगुहाके विवरमें तुम प्रवेश करो। यह सुनकर राजा वहाँ गया। इतने में यहाँ संग्रामसे घूमवेग भाग खड़ा हुआ। शरजालको सज्जित करती हुई उसके लिए दैवी वाणो हुई कि किस प्रकार उस निधीश्वरका उद्धार हुआ। वीणाके समान बालाप करनेवाली वह देवी अपने घर चली गयी। यहां वह राजश्रेष्ठ राजा धत्ता-उस ऊंचे-नीचे विवरमें प्रवेश करते हुए एक महासरोवरके जलमें गिर पड़ा। उसमें जाते हुए और तिरते हुए शिलासे बने खम्भेपर चढ़ गया ॥१९॥ १२ इतने में सूर्य अस्ताचलपर पहुंच गया। मानो दिनराज द्वारा फेंकी गयो जैद पश्चिम दिशाकी परिधिमें जाती हुई शोभित हो रही हो । या महासमुद्रकी खदानमें पड़े हुए मणिको तरह वह कुंकुम और फूलोंके समूहकी तरह रक्त है। मानो रकरूपी रससे लाल चतुष्प्रहर है। मानो आकाशरूपी वृक्षसे नवदल गिर गया है। मानो दिशारूपी युवतीने लाल फलको खा लिया है। किरणावलीसे विजडित सूर्यका वह बिम्ब मानो उग्रताके कारण अधोगति में पड़ गया है । स्थूल तमाल वृक्षोंसे नीले, जिसमें रत्नोंका समागम है ऐसे विवरके भीतर कि जिसमें अन्धकार फेल रहा है। श्रीपाल नील-शिलाहलके खम्भेपर बैठा हुआ, मगर समूहके भयके प्रतारसे उदास होकर श्री अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और आचरणनिष्ठ साधुओं, पांचों सम्यग्दृष्टिको संचित करनेवाले परमेष्ठियोंके प्रभु चरणोंका ध्यान करता है । पत्ता-पांच अक्षरोंवाले णमोकार मन्त्रका आनन्दसे ध्यान करनेवालेके सम्मुख चोर, शत्रु, महामारी, आग, पानी और पशु, जलचर समूह सानन्द शान्त हो जाते हैं ॥१२॥ १३ इतने में सवेरे सूर्योदय हुआ, मानो धरतीका उदर विदारित करके निकला हो। उस राजाने तुरन्त पानीमें तैरकर घूमते हुए, किनारे पर स्थित नेत्रोंको आनन्द देनेवाली, जिनेन्द्र भगवान्की प्रतिमा देखी। निर्विकार निर्ग्रन्थ सुन्दर, प्रहरणोंसे रहित, हाथोंका सहारा लिये हुए जो लाखों लक्षणोंसे उपलक्षित थी। मैं ( कवि ) कहता है कि वह अहिंसाके समान थी। मैं कहता हूँ कि वह अपवर्गकी पगडण्डी थी, और नरकमार्गके लिए कठिन भुजारूपी अर्गला थी। स्वामी

Loading...

Page Navigation
1 ... 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463