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३६.३.१४]
हिन्दी अनुवाद कर ले। दूसरी स्त्रियों में रत होकर रेजित करनेवाले उस प्रियको आलिंगन नहीं दे सकती। तब पिताने कहा-हे पुत्री, तुम ईजिनित खेदको छोड़ो। विट स्वभावसे चंचल होते हैं ! भ्रमर दूसरे-दूसरे फूलोंमें दिन गवाता है। क्या वह एक लतामें रमण करता है? इस बीच में श्रीपालने सुखावतीको घरों-घर ढूंढ़वाया। उसे नहीं देखते हुए वह समझ गया और अफसोस करने लगा कि मैंने अपने प्रिय मनुष्यको अपमानित किया। वह अत्यन्त लज्जित होकर अपने भवनमें गया। प्रत्येक प्राणी विरह से पीड़ित होता है। यह विचारकर सुन्दर श्रीपालने एक लेखधर विद्यावर मनुष्यको भेजा। जिनवरके चरणों में भावित मन विद्याधर राजा अकम्पनके घर वह लेखधर पहुंचा।
धत्ता-लेखके साथ उपहार देकर वह विद्याधर योद्धा विद्याधर राजाके चरणोंमें पस गया। (और बोला ) दुर्जनोंका नाश करनेवाले आप सज्जन, बसुपाल और श्रीपाल दोनों राजामौके द्वारा मान्य हैं ।।२।।
उसने भी अपने हाथमें निवेवित लिखा हुआ पत्र देखा। वह पत्र नहीं बोलती हुई भो, बोलती हुई शब्दोंकी पक्तियोंके द्वारा शोभित था। कंचुकीके वचनोंसे स्वयं सुनकर जो मैंने सेठको कन्यासे विवाह किया है वह मैंने अपने कुलमें मर्यादाका पालन किया है । परन्तु मेरा मन, तुम्हारी पुत्रीके मुखकमलमें है। मैं तुम्हारी चम्पक कुसुमावलिके समान गोरी कन्पाकी याद करता है। जिस प्रकार उसके स्तनतल कठोर, उसी प्रकार उसका प्रहार । जिस प्रकार रक्तरण लाल होता है उसी प्रकार उसके अधर लाल हैं। जिस प्रकार उसके कान नेत्रों तक समागत हैं, उसी प्रकार उसके बाणोंका स्वभाव दूसरोंको मारना है। जिस प्रकार उसका मध्यभाग क्षीण है. उसी प्रकार यह विरहोजन; जिस प्रकार धनुष गुण ( डोरी) से मण्डित है उसी प्रकार उसका शरीर गुणमण्डित है। पिताके निकट आसनपर बैठी हुई कामदेवके तीरोंसे घायल कन्याने यह सुनकर अपने मन में अच्छी तरह विचार किया कि मेरे स्वामीने मान छोड़ दिया है। उसके पिताने भी उससे यही कहा। कूचका नगाड़ा बजाकर सेना चल दी। अपने पिताके साथ कुमारी वहाँ गयी जहाँ उसका प्रिय वर निवास करता था।
पत्ता-अपने हाथी और घोड़ोंके साथ अकम्पन वहाँ पहुंचा । नभके आंगनको आच्छन्न देखकर दोनों ही भाई आलिंगन मांगते हुए आदरपूर्वक सम्मुख आये ||३||