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३४. १२.५]
हिन्दी अनुवाद पर चंचल भ्रमर समूह आ-जा रहा था, जो चरणों से चापनेवाला और धरतीको भुकानेवाला था, जिसने अपनी धवलतासे आकाशको धवलित कर दिया था। जिसने अपने बलसे ऐरावत हायोंकी क्रुद्ध कर दिया है, जो शीतल मदजल बिन्दुसे दिशामुखको सींच रहा है, जिसने अपने चार दांतोंसे जंगलको उजाड़ दिया है। जो पंचदन्त ऊंचे शरीरवाला है, रक्षकोंसे त्रस्त जो परिधानसे शोभित है, जिसके लम्बे चंचल कान पल्लबके समान हैं, लम्बी पूंछवाला, महाशब्द करता हुआ, लालतालुवाला लालमुख, नखवाला, कैलास पर्वतको तरह चमकता हुआ स्वच्छ कान्तिवाला, लक्ष्मीसे रमण करनेवाला श्रीपाल दौड़ा। उसने जंगल में भद्र नामक हाथीको देखा।
पत्ता-शत्रुपक्षका नाश करनेवाले उस हाथोको देखकर राजाका मन हर्षसे फूला नहीं समाया। बड़ो-बड़ी चट्टानोंवाले पर्वतसे गरजता हुआ वह राजा ऐसा दोड़ा, मानो गरजता हुआ सिंह दौड़ा ॥१०॥
उसके दांतोंको दबाता हुआ वह हाथीपर अपना हाथ डालता है। उसके सब अंगोंका आलिंगन करता और छूता है, शरीरकी रक्षा करता है और फिर मिलनेके लिए करता है, फिर पास पहुंचता है, चारों ओर घूमता है। श्वेत दांतोंवाला वह हाथी अनेक रत्नोंके आभूषणवाले कामिनी जनका अनुकरण करता है। वह चंचल श्रीपाल उसके चारों पैरोंके नोचेसे जाता है। हकलाता और हुंकारता है और निकल आता है, उसे लांघता है, कुम्भस्थलपर बैठता है, पूंछ, सूड ओर वक्षस्थलपर प्राप्त करता है। वह हाथीको दसों दिशाओंमें घुमाता है। वह स्वामी ऐसा मालूम होता है, मानो मेघोंमें विद्युत् पुंज हो। अपने गम्भीर स्वरसे उसके भयंकर स्वरको पराजित करता और कोड़ा करता हुआ उसकी सूंड़को अपने हाथसे पकड़ लेता है। जिसका शरीर आकुंचित है ऐसा प्रवंचनामें कुशल वह क्रमसे उसके दांतोंरूपी मूसलका अतिक्रमण कर बलवान बलका निर्वाह करनेवाले महाबलशाली उससे खूब समय तक लड़कर
घत्ता-गजमदसे परिपूर्ण, लीलासे मन्थर उस हाथीको राजा श्रीपालने प्रसन्न कर लिया। मानो प्रबल गुफाओंवाले. मन्दराचल पहाड़को उसने अपने बाहुदण्डसे उठा लिया हो ॥११॥
१२ मदरेखाको शोभासे परिपूर्ण उस हाथीको जब राजा श्रीपालने युद्ध करके पकड़ लिया तो आकाशसे जिसमें चंचल भवरे गुनगुना रहे हैं, ऐमा सुमन समूह गिरा। उसे प्रबल उच्च पुरुष जानकर तथा विश्व-भयंकर युद्धको छोड़कर उस हाथीने उसे अपने सुन्दर कन्धेपर चढ़ा लिया। और विद्याधरके अनुचरोंने उसे नमस्कार किया और वे उसे वहाँ ले गये जहाँ विद्याधर रहता