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३५. ६.९]
हिन्दी अनुवाद फिर नभतलसे ले गयी। फिर उसने धरती-तल और अमलिन बलवाला एक युगल पुरुष देखा। जो पैरोंसे रहित कुशल तपस्वीकी तरह था। जैसे रत्नोंसे रहित समुद्र हो । मानो जिसने अपना कवच छोड़ दिया है, ऐसा युद्ध करनेवाला योद्धा हो। मानो असह्य विषयाला प्रलयित महाधन हो, मानो दूसरोंके दोष देखनेवाला दो जिह्वावाला दुष्ट हो, मानो जिसने मण्डलकी रचना की हो ऐसा राजा हो । जो शत्रुके तीरकी तरह लाल-लाल नेत्रवाला है जो मानो कालके द्वारा कालपाशकी तरह फेंका गया है, जो मानो दूसरा यस है। इस संसारको निगलनेके लिए ऐसा दहाड़ोंसे भयंकर महानाग उसने देखा । "
घता-उस पृथ्वीश्वरने प्राण हरनेवाले उस सांपको उसकी मजबूत पूंछ पकड़कर आकाशतलमें धुभाकर शीघ्र ही पृथ्वी-तलपर पटक दिया ॥४॥
वही सपं अस और गजघण्टारूपी रत्न हो गया। जिससे युद्ध में चतुर शत्रु-योद्धा जीते जाते हैं । अंगुलीमें अंगूठो पहना दी गयी। एक और शत्रु पुरुष वहाँ अवतीर्ण हुआ। उसने कपटसे प्रणाम कर कहा कि यदि आप इस वजमय मुद्राको लेकर इन रत्नोंको नष्ट कर दो तो मैं समझंगा कि तुम त्रिभुवनको उलट-पुलट सकते हो तब उसने उन रत्नोंको नष्ट कर दिया। उससे दुर्जनोंके नेत्र बन्द हो गये। लोगोंने रत्नसिद्ध हुए कहकर नमस्कार किया। और जिन्हें ऐश्वर्य धन दिया गया है ऐसे उन लोगोंने उसे माना और उसकी प्रशंसा की। हजारों लोग आंखोंसे देखने लगे, बहरेका बहरापन दूर हुआ, गूंगे लोग सुन्दर बालापमें बोलने लगे, मृत व्यक्ति श्रीपालके प्रतापसे जीवित हो उठा।
पत्ता-उसके गुणगानको देखकर श्रीपुरके स्वामी राजा श्रीशयन हर्षित होकर कमलके समान नेत्रों और हाथोंवालो अपनी वीतशोका नामको लहकी उसे दे दो
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विजयनगरमें यशरूपी कोंपलका अंकुर यशकोति अंकुर, घरकोति राजाने कीतिमतो कन्या और धान्यपुरके पनादित राजाने अनुरागसे विमलसेना कन्या उपहारमें दो। उसे राजनीतिविज्ञानमें परिपक्व मति पुरोहितके साथ सेनापत्ति और गृहपति भी प्राप्त हुए। सुखावती फिर भी पतिको ले चली। उसने आकाशमें फिर धूममेधको देखा। दस सिरोंकाला ईर्ष्याकी ज्वाला उत्पन्न करता हुआ, बीस हाय और बीस अखियाला, शिवके गले के विष और तमालको तरह काला, भौंहकी वक्रतासे युक्त भालयाला, कानोंको कटु लगनेवाले वचनोंको बोलते हुए उस स्त्रीने श्रीपाल और सुखावतीको तिनकेके समान समझते हुए युद्ध के लिए ललकारा और कहा कि हे रसावति ! तू भोपालको छोड़-छोस । मेरे सामने धनुष धारण मत कर। हे हताश, तू यमके शासनसे भी नहीं बच सकती।