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हिन्दी अनुवाद तीनों दूषितविनय है। निकासंविधा कापी कला सिर काट लो।" तब वह सेठ सुहावने स्वरमें कहता है-"जब मैंने परिणामका विचार किया था और हाथीको भोजन कराया था, उस समय तुमने जो दर मुझे दिया था, हे राजन् ! शान्ति करनेवाला वह वर माप भाष मुझे दें। इनको परदेश न भेजें, इसको तलवारसे खण्डित न करें।" राजाने इसपर करुणा को
और देश निकाला और मृत्युदण्डको उठा लिया। राजाने जो सेठका कपन मान लिया, उसने मन्त्री पृथुधीको कुपित कर दिया । उपकार भी दुष्टके लिए दोषके समान होता है। नागको दिया गया दूध विष ही होता है। वह सोचता है कि मरूंगा या मागा, सेठका प्रतिकार अवश्य करूंगा।
पत्ता-फिर जब वह हिम शीतल नदी किनारे गया हुआ था। वहां उसने विद्यापरके हाथसे गिरी हुई एक अंगूठी देखी ॥१॥
सुखदायिनी उसे उसने अपनी अंगुलीमें पहन लिया। इतने में विद्याधर धरती देखता है। भान्त्रीने पूछा-तुम क्या देखते हो? उसने उत्तर दिया-"मैं यहां था। मेरी कामरूप धारण करनेवाली अंगूठी, हे मित्र, यही कहीं गिर गयी है, मानो जैसे पति के द्वारा नहीं सिखायी गयी प्रियतमा हो।" तब उसने वह अंगठी हसकर उसे दिखायी और पुनः उससे मांगी। विद्याधरने वह अंगूठी उसे दे दी। वह सन्तुष्ट होकर अपने घर गया। उसने अपने छोटे भाई वसुको सिखाया, उसने अंगूठीसे कुबेरप्रिय बना दिया। वह धर्मको बाननेवाली सत्यवती रानीके एकान्त आसनपर चढ़ गया। वह उसे अपना सगा भाई समझती है, लोग उसे अकार्य करता हुआ सेठ दिखाई देता है। किसी दुष्टने राजासे निवेदन किया, हे परमेश्वर, तुम्हारी स्त्रीसे रमण किया है
धत्ता-नवयौवन मदसे मत्त धनवतीके पुत्रने निश्चय से। किसी दूतको मत भेजो खुद जाकर देखो ॥१४॥
१५ उस मुग्धाने उस मायावी वणिकत्वको प्राप्त उस बालकको सिरपर चूम लिया। दुर्दर्शनीय ईष्यसि उत्कण्ठित नेत्रोंसे राजाने स्वयं उसे देखा। वह नहीं जान सका कि यह कपटरूपकी रचना है। भौंहोंकी भंगिमासे उसका मुख टेढ़ा हो गया। पृथुषोने भी घर जाकर राजाके आदेशसे, यमशासनसे यमदूतके समान, चारित्र्यकी महाऋद्धिसे सम्पन्न प्रतिमायोगमें स्थित सेठको
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