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हिन्दी अनुषाव की भूरिया जानोमा सुशासन शोली उसे दिखाई फिर वह कुमारी छिपकर बैठ गयी। और दुर्लच्छ है आचरण जिसका ऐसी वृद्धा बनकर बैठ गयी। उसने दर्शनमें लीन विद्यतधेगाके लिए भौंहके द्वारा वरको दिखाया। उसने भी उससे कहा कि प्रिय कामदेव है। लेकिन मायावी बुढ़ापेसे उसके अंग छिपे हुए हैं। तब भोगवतीने वहां मजाक करना शुरू किया कि तुम्हारी प्रेम अभिलाषा वृक्षके ऊपर है। है विद्युतवेगा! सखि तुम क्या करती हो। शीघ्र ही किसी युवक लड़के से अपनी शादी कर लो।
घत्ता-तब विद्याधरकी कन्याओंने अलंकार पहने हुए स्वयं ब्रह्मा, महेश्वर, आदि जिनेन्द्रकी संस्तुति को जो स्वयं बिना अलंकारोंके थे ॥२॥
लाल-लाल ओष्ठोंवाली ( रक्ताधर ) उन्होंने सैकड़ों संसारोंसे विरक्त जिनेन्द्र भगवानको संस्तुति की। चंचल चित्तवाली, यौनगिरीके समान स्थिर चित्त जिन भगवान्की, विरहसे आर्द्र सन्तप्ताओंने तपश्चरणसे सन्तप्त जिनधर की, मृगनयनियोंने ध्यानमें लीन नेत्रवाले जिनेन्द्रकी, मध्यमें क्षीण स्त्रियोंने पापोंक क्षय करनेवाले जिनेन्द्र की, स्निग्ध स्तनोंवालियोंने स्नेहसे रहित जिनेन्द्र की, कुटिल आलाप करनेवालियोंने अकटुलों में श्रेष्ठ जिनवर की, जनमनको शल्य रखनेधालियोंने शल्योंसे रहित जिनवरकी तथा इस प्रकार अपने आकाशगमनसे मन्दराचलको घाटियोंका उल्लंघन करनेवाली उन सुन्दरियोंने परमेश्वरकी वन्दना कर अभिषेक और तरह-तरहकी पूजाएँ कीं। इतनेमें बेकनीय नामका कुमार अपने परिजनोंके साथ वहाँ आया। इस वृद्धने उस वृक्षासे पूछा कि विशेष अलंकारोंसे चमकता हुआ यह मनुष्योंका मेला तुरन्त क्यों दौड़ रहा है। तब उस वृद्धाने हंसकर कहा कि विद्याके आकर्षण ( कान्ति ) से कौन-कौन लोग आहत नहीं हुए । इस भोगवती नगरीमें त्रिसिर नामका राजा है। उसकी सहायक रतिप्रभा नामकी पत्नी है। उसका प्रभावतीसे बड़ा बेटाहा. शिव नामका गणोंसे मण्डित रात्रिमें जिसमें कुत्ते भौंक रहे हैं, ऐसे मरघटमें विद्या सिद्ध करते हुए । इसका विद्याने कोटाग्र ( गर्दन ) को टेढ़ा कर दिया है, और अवरके आवेगसे इसका शरीर कैंपा दिया ।
पत्ता-प्रणयसे आकर वैद्यने इसे औषधि दी। और बढ़ते हुए कुमारके वृद्धापनको छीन लिया ॥३॥
लेकिन उसके कण्ठका टेढ़ापन नहीं गया। पिताने वीतराग मुनिसे पूछा कि हमारे पुत्रका गला सीधा कैसे होगा? यह सुनकर मुनिवरने कहा कि संसारमें जिसे सर्वोषधि विद्या सिद्ध होगी ऐसे तुम्हारी पुत्री कुमारी प्रभावतोके प्रियतम, उस चक्रवर्तीके छूनेसे लड़केकी गर्दनके टेपनका नाश हो जायेगा। 'जिनेन्द्र भगवान्' का घर जो सिद्धकूट नामका प्रसिद्ध मन्दिर है