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हिन्दी अनुवाद
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३२. २५. १२]
घता-तुम्हारी अंगूठी देखकर वह अश्रुजलसे अपनी चोली गोली कर रही है। वह कोमल विरहसे उसी प्रकार जल रही है, जिस प्रकार दावानलसे नयी लता जल जाती है ॥२३॥
२४ घर जानेपर मुझसे--जिसके मुखसे वाणी निकल रही है, ऐसी उसकी माने कहा-कोई आदर्श पुरुष है उसको 'मुद्रा' देखकर लड़की कामसे पीड़ित हो उठी है। उस बालसखोने कुछ भी विचार नहीं किया और उसने मुझे अपना हृदय बता दिया। मैंने उसे धीरज बंधाया कि चन्द्रकिरणोंके समान शोभावाले प्रियसे तुम्हारा मिलाप करा दूंगी। उसी देशमें चामीकर (स्वर्णपुरमें ) 'भदनवेगा' स्त्रीसे रमण करनेवाले हरिदमनकी 'मदनावती' नामको विद्याधरी सुन्दरी सड़को थी। पिताके पूछनेपर मुनियोंने कहा था कि जो रत्नोंसे उज्ज्वल हिमदलकी कान्तिको आहत करनेवालेको लाये गये तुम्हारे कम्बलको देखकर विगलिस हो जायेगा उस युवतीके मनमें वही उसका धैर्यबल ( मन ) होगा। हे सुभग ! तुम्हारे वियोगमें वह पीड़ित है। और बेचारी तुम्हारी चिन्ता-वियोगमें पोड़ित है। उसने कर्णफूल छोड़ दिये हैं। और मेरी सखीका जीना कठिन है।
घत्ता-प्रेमके वशीभूत होकर तथा उत्कट कामक्रीड़ाके रससे भरी हुई उस दीनने वह तुम्हारा कम्बल मोगा और मैंने भी अपने हाथसे उस प्रावरणका आलिंगन किया ॥२४॥
तुम यहाँपर अशनिवेग विद्याधर द्वारा लाये गये हो। नरपति समूहने ऐसा मुझसे कहा । उसपर विश्वास न करते हुए 'मैं' वहाँ गयी। हे राजन् ! प्रजारूपी कमलोंका सम्बोधन विकसित करने के लिए चन्द्रमाके समान गुणपाल जिनोंके पैरोंपर 'मैं' पड़ी थी। तथा सजनके नेत्रोंको आनन्द देनेवाले तुम्हारे आगमनको उसने पूछा-उन्होंने कहा कि बाल राजा जो प्रकाशसे भास्वर है, सांतवें दिन आयेगा। और विद्यालाभके साथ घरमें प्रवेश करेगा। समस्त पुरजन भी यही बात कहते हैं। मैंने भ्रमरके समान काले बालवाले तुम्हारे भाईसे भी बात की, शोकसे विह्वल मातासे भी मिली । सुमेरु पर्वतके निकट निवास करते हुए, हे देव ! वे हा-हा श्रीपाल कहते हुए, उन्हें तथा आक्रन्दन करते हुए, जिनके सिरके बाल मुक्त है ऐसे सैकड़ों परिजन और स्वजनोंको भी मैंने देखा। वे सब नगरमें तभी प्रवेश करेंगे कि जब हे राजन् ! तुम उन्हें मिल जाबोगे ।
धत्ता-नररूपी तरु चले गये, और गज भी गये और मा गये। जो गणिकाएँ हैं मानो वे वनदेवियाँ हैं । हे प्रिय ! तुम्हारे एकके बिना लोगोंसे व्याप्त वह नगर भी वनकी भांति मालूम होता है ॥२५॥
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