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३१. २८. १०] हिन्दी अनुवाद
३०९ जाता । नगरदेवीके द्वारा मुक्त राक्षसोंने अनुचरोंको डरवा दिया । राजा भी अपने मनमें आशक्ति हो गया परन्तु सुकेतु रोमांचित हो उठा। उसने रत्नसमूह दे दिया। दर्प दूर हो गया। बताओ तपवालेसे कौन मलिन नहीं होता।
पत्ता-दूसरे दिन नागभवनके तरुकोटरमें दूसरेके धनका जिसे स्वाद लग गया है, ऐसे नागदत्तने कहीं एक मणि देखा ॥२६।।
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किसी प्रकार रखने के लिए उसने उसे निकाला । फिर कोषको ज्वालासे विस्फुरित होकर, और यह कहकर कि यह मेरे हाथपर क्यों नहीं आता, हंकार भरते हए उसके भारी पत्थरसे प्रहार करनेपर वह मणि आकाशमें उछलकर उसके भालतलसे जा लगा। उसके उठे हए खण्ड ( नोक ) से वह विदारित हो गया । नागदत्तको बुलाया गया। धन-संख व्यवहारोसे जीता गया वसुन्धराका पति (सुकेतु) हारको प्राप्त हुआ। लेकिन जितना धन उसका बढ़ा, वह दुष्ट उतना ही धन हार गया (जुएमें ) धनगवसे दुष्ट आदमी उद्दण्ड ( उद्भट ) हो जाता है। सुफेतुने वह धन मांगा। उसने कहा-"तुम अपनो भौहें टेढो क्यों करते हो, देवोंके प्रभावसे में तुम्हें दूँगा"। फिर उसने ( नागदत्तने ) नागराजसे पूछा-हे देव, आपने मुझे क्यों दरिद्र बना दिया है ? मांगते हुए भी कोई पर मुझे नहीं दिया । तब नाग कहता है, देता हूँ।
पत्ता-वणिक् कहता है---भो-भो! विषधरश्रेष्ठ आदरणीय, सुकेतुका नाश करनेवाला और बाहुओंका भूषण बल मुझे दीजिए ॥२७॥
गम्भीर ध्वनिवाला सौप कहता है-"धनसे दिव्य धन नहीं जीता जा सकता। जिसका पुण्य सहायक होकर चलता है उसके प्राणोंका अपहरण कौन कर सकता है ? लोभी तुम मुझे उसके लिए समर्पित कर दो, और यह मर्यादा वचन उससे कह दो। कहो कि मागराज कर्ममार पारण करना चाहता है । यदि कर्म नहीं है, तो तुम्हें धारण करना चाहता है।" तब बुरा सोचनेवाले उस सांपको उसने सुकेतुके लिए सौंप दिया। सुकेतुने अपना सोचा हुआ किया। उससे मनचाहा काम कराया। अशेष कामोंका उसे आदेश दिया गया। जब सब काम सिद्ध हो गये, तो सांप आदेश मांगता है । वणिक् कहता है कि पत्थरका एक खम्भा लाकर घरके भनिन में स्थापित करो और तुम एक बहुत बड़े बन्दर बन जाओ। वहाँ मजबूत खम्भेसे एक जजीर बांधकर और