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सन्धि ३२
मनुष्यों, सुरों, असुरों और विद्याधरोंके लिए शरण स्वरूप समोशरणमें विराजमान गुणपाल जिनेन्द्रने जो कहा था और जिसे मैंने और तुमने सुना था।
हे देवि सुलोचने ! उस बोते हुए कथानकको मेरे अभिज्ञानके लिए कहिए।
इस प्रकार सती सुलोचना, जयकुमारके पूछनेपर श्रीपालकी गुण-परम्पराका कथन करती है। अपने घरोंको शोभासे इन्द्र के विनोदी जीका द क्षिण में श्रीपाल राजा वसुपालके साथ इस प्रकार रहता था मानो इन्द्र देवोंके साथ रहता हो। इस बीच कुबेरश्री माताने विचार किया और अपने मुख-गह्वरसे निकलनेवाली वाणीसे कहा-'सब लोग भावपूर्ण दिखाई देते हैं। अकेला मेरा स्वामी दिखाई नहीं देता। और एक दूसरा मेरा बह भाई कुबेरप्रिम कि जिसने अपने तेजसे चन्द्रमा और सूर्यको जीत लिया है। वे दोनों गये और फिर लौटकर नहीं आये। क्या जाने वे मोक्ष चले गये? ऐसा कहते हुए उसका सुधीजनको मिलानेवाला बायाँ नेत्र फड़क उठा। उसके हृदयमें परम-उत्साह नहीं समा सका। इतनेमें वनपाल सामने आ पहुंचा।
___पत्ता-वह कहता है-हे स्वामिनी सुनिए । कामदेवके विकारका नाश करनेवाले केवलज्ञानके धारी, महाऋषि, गुणपाल देवताओंसे घिरे हुए उद्यानमें अवतरित हुए हैं ॥१॥
वापर एक और तीन गुप्तियोंसे युक्त तथा ध्यानके कारण निमीलित नेत्र, जो कुबेरप्रिय मुनि हुआ था, वह तुम्हारा भाई आया है। यह सुनकर देवी रोमांचित हो उठी। मानो अमृतरससे लताको सौंच दिया गया हो। यह परमेश्वरी वन्दना-भक्ति के लिए गयो। अश्वों और गजोंकी लार और मदकी नदी बह गयी। दूसरे रास्तेसे दोनों सुन्दर पुत्र चले, जिन्होंने रथ