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३१. ४.१३]
हिन्दी अनुवाद पत्ता-जिस कारणसे रमणरसमें दक्ष वे दोनों अपने घरमें जला दिये गये। पारावत जन्मको प्राप्त हुए बाहर जानेके प्रेममें अनुरक्त वे मार्जारके द्वारा ( बिलाव द्वारा) खा लिये गये थे ॥२॥
फिर हम विद्याधर उत्पन्न हुए और हम मुनिवर आगमें होम दिये गये। भवदेव, मार्बार और कोतवाल, जो कि प्राचीन समयसे पापनिरत था, वह इस समय यति हो गया है, इस विचित्र गतिकाले संसारको जलानेके लिए । चलो इसकी बुद्धिकी परीक्षा करें कि यह हमसे कुख होता है, या हमें क्षमा करता है। इस प्रकार विचारकर कामदेवके तोरोंको नष्ट करनेवाले यतिवरके आसनके निकट जाफर वे बैठ गये। उन्होंने वन्दना की और धर्मकी विधि पूछी। मुनि कहते हैं-हे पुत्र, श्रुसज्ञानके निधि गुणी यह लेश्यासंख मुनि संघके साथ आ रहे हैं इनसे तत्त्व पूछो। मैं कुछ भी नहीं जानता, मैं नवश्रमण हूँ। देवके लिए मैं क्या धर्मश्रवण कराऊ । पर आग्रह करनेवाले देवसे वह बच नहीं सका। तब उसने फिर उससे त्रिजगका कथन किया । जिस प्रकार जीव-अजीव, पुण्य गतियाँ, जिस प्रकार बढ़ी हुई पापबुद्धि, जिस प्रकार आस्रवसंवर और निर्जरा, जिस प्रकार बन्ध-मोक्ष और जन्मातर है, वह उस मुनिने सब प्रकार कथन किया। यह सुनकर देव बोला-आपने बचपन में तपश्चरण ग्रहण कर लिया है, उस वैराग्यका क्या कारण है।
पत्ता-यह सुनकर रागको नष्ट करनेवाली मृदु और गम्भीर वाणीमें वह मुनिवर केवलीके द्वारा कहा गया पूर्व वृत्तान्त उस देवको बताते हैं ? ||३||
__ जिसके शिखरोंपर आरूढ़ होकर देवता रमण करते हैं, यहाँ ऐसी पुण्डरीकिणी नगरी है। उसमें कुम्भोदर नामका बनिया निवास करता था। उसका भीम नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। निधन घरसे विरक्त होकर मैं कोड़ाके लिए नन्दन वनमें गया । यतिको वन्दना कर मैंने श्रावकवत स्वीकार कर लिये, घर बानेपर बापने यह सहन नहीं किया। दूसरोंके भारको ढोनेके कमसे निद्रा रहित दरिखके लिए क्या व्रत सुन्दर होता है ? हे पुत्र, जिसने ये व्रत दिये हैं उसोको सौंप दो। हे दीर्घबाह, आओ जल्दी चलें।" पिताके अपने हाथसे प्रेरित मैं पुनः मुनिके निवासके लिए चला । दूसरेका हिसक, परस्त्रीका अपहरण कर्ता, दूसरेके ममका उद्घाटन करनेशला, झूठ बोलनेवाला, और लोभीको भी, रास्ते में बंधा हुआ देखा । पिताने एक-एकसे पूछा। उन्होंने भी अपना-अपना चरित बताया कि जो हिंसा और झूठ वचनोंसे घिरा हुआ था।