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३०. १२. १३]
हिन्दी अनुवाद
जिस प्रकार तुमने, उसी प्रकार उसने अपने तपका कारण थोड़ेमें बताते हुए कहा-पहले यहाँ रतिसेन नामका सुन्दर वाणीवाला विद्याधर भूमिविहारके लिए आया था। जिसमें हिताल. वृक्ष आन्दोलित हैं, और जो ताली-ताल और तालूर वृक्षोंसे प्यारा है. ऐसे नन्दनयनके लताधरमें वहाँ सोया हुआ था, विषधरने उसके पैरके अंगूठेमें काट खाया। मेरा स्वामी भी घूमता हुमा वहां पहँचा। चिल्लाकर उसने वन में सांपको देखा। क्रोधसे उसने वं झं हंसक कहा । और गरुड़के समान उसने वह विष उतार दिया। उन दोनों में प्रगाढ़ मित्रता हो गयी। विद्याधर अपने नगर और सेठ अपने घर चला आया। वह विद्यापर द्वारा उस इनमें आया। वह बहत-से नगरजनों को देखते हुए उसको कान्ता गान्धारोने कहा कि मैं यहीं पर हूँ और कौतुकसे कीड़ा करते हुए लोकको देचूगी । तब रतिषणा नामक विद्याधरको स्त्री गान्धारीने मेरे प्रियतमको देखा।
धत्ता-निर्दय कामदेवने उसके हृदयको विदोणं कर दिया, मानो श्रेष्ठ गजके चरणोंसे आहत जल दिशाओंमें उछल पड़ा ||११||
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मनमें कामदेवके बढ़नेपर प्रेमकी उस अन्धीने अपने पतिसे पूछा- प्रियतम, यह कोन है, क्या मनुष्य है, बताओ क्या यह यक्ष है क्या किन्नर है? क्या विषधर है। उसने कहा यह हमारा मित्र है। गुणश्रेष्ठ कुबेरकान्त सेठ । इसे गरुड़ मन्त्र याद था। मुझे सौपने काट खाया था, इसने मुझे जोवित किया। चीनांशुकको धारण किये हुए वे दोनों अशोक वृक्षके नीचे बैठ गये। मैं इन तीखे नाखूनोंका क्या करूं? हे प्रिय, तुम्हारे योग्य पुष्पोंको चुनती हूँ। प्रियतमा चली गयी, और झूठ उत्तरको खोजके लिए, और कांटेसे करपल्लवको बेधकर, हा-हा मुझे सांपने काट खाया, इस प्रकार विषको झूठी वेदनासे अकित होकर गिर पड़ी। प्रियने सैकड़ों दवाइयोंका प्रयोग किया परन्तु प्रियाने अपनी गाँखें सिरपर चढ़ा ली। स्त्रीसे संसारमें कौन प्रवंचित नहीं हुआ । पति वियोग और शोकको प्राप्त हुआ। वह तुरन्त हाथ जोड़कर यहाँ गया, जहां मेरा पति ( कुबेरकान्त ) बैठा हुआ था।
पत्ता-उसने कहा-हे मित्र, तुम आओ । विष सब अंगोंको जला रहा है ? मेरी पत्नीको नागने काट खाया है, तुम्हारे मन्त्रसे वह निश्चित रूपसे जीवित हो जायेगी ।।१२।।