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हिन्दी अनुवाद
१३.
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मित्रने मित्रको अपना मन दे दिया। उसने जाकर उस मुग्धाका मुख देखा। मेरे पति ने farer कोई चिह्न नहीं देखा, अपनी आँखें बन्द किये हुए विद्याधर ने कहा- मन्दराचल जाकर मैं शीघ्र मैं दिव्यौषधि लेकर आता हूँ। तुम प्रिय सखीकी रक्षा करना । यह कहकर उसका प्रिय जैसे ही गया, वैसे ही वह सुन्दरी शीघ्र बैठ गयो । वह कहती है- मुझे विषवाले सांपने नहीं काटा है, मुझे तुम धूर्तं भुजंग (बिट) ने काटा है। यदि कामदेव मन्त्रले शरीरको अभिमन्त्रित्र कर दो, यदि रतिरसकी जलधारा सींच दो तो मैं विरहविषके समूहसे बच सकती हूँ | तब प्रशान्त मोह मेरे प्रियने कहा कि जिस प्रकार इन्द्रवारुणी फल पोला होता है तुम मेरे शरीरको उस प्रकारका समझो में कामके तीरोंसे कभी विद्ध नहीं होता। मैं नपुंसक हूँ, मैं स्त्रियोंसे रमण नहीं कर पाता। दूसरेकी कुलपुत्री मेरे लिए माता के समान है। फिर तुम मेरी बहन और मित्र हो ।
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३०. १५.३]
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धत्ता - इतनेमें रतिषेण भी मन्दराचलसे आ गया । सेठ कुबेरकान्त पत्नी सहित उससे पूछकर आकाशमें विहार करते हुए अपने गन्धार नगर आ गया ||१३||
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अपनी पत्नी के साथ विहार करते हुए उत्पलखेडके बाहरी आकाशमें जाते हुए उसका विमान स्खलित हो गया । उसने उपवनमें मुनिको देखा। दोनोंने भावपूर्वक उनकी बन्दना की । पूछे जानेपर मुनिने धर्मका कथन किया, श्रावक मार्गका विशेष रूपसे उपदेश दिया। गुणवान् और पवित्र वचनत्राले उन मुनिने परस्त्रीसेवनका विशेष रूपसे निवारण किया कि परस्त्री-सेवन करनेवालेकी लोक द्वारा निन्दा की जाती है, असिधारा और करपत्रसे उसका छेदन किया जाता है । उसको तृप्ति नहीं होती और सज्जन सन्तप्त होता है। कामदाह बढ़ता है । मन फैलता है। स्नेह करनेवाले दोनों नेत्र जलते हैं। परस्त्रो सेवन करनेवालेको सुख कहाँ ? यद्यपि लोक अपने कार्यकी आलोचना करता है, परन्तु शंका करनेवालेको उससे भी दुःख होता है। सिरका मुण्डन, ( बिल्लfणि बन्धन ) खोटे गधेपर आरोहण, नासिकाका खण्डन इस प्रकार तीनों लोकके जार अप्रशंसनीय होता है। मरनेपर पुनः दुभंग, दुष्ट, नपुंसक होता है।
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पत्ता - इस प्रकार मुनिके उपदेशों को सुनते हुए विद्याधरीका मन सन्तप्त हो उठता है । 'हा-हा, मुझ दुष्टाने दुष्ट काम किया ।' वह अपने मनमें विचार करती है ||१४||
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मुनिवरका मान कर आकाशतलमें अपने चरणकमल रखते हुए वे दोनों भी चल दिये। मुनिके वचनोंका विचार करती हुई और नरक पतनसे डरती हुई कान्ता विद्याषरीने अपने
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