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३०. २१.५]
हिन्दी अनुधाव
पास आया हुआ है। आओ मैं तुम्हारा मेल कराता हूँ। इस समय मैं तुम्हारे विवाहकी अवतारणा करता हूँ ।" यह कहकर उसने उसे कन्धेपर चढ़ा लिया और विरत ( मुनि) के पास विरता ( आर्या ) को ले गया । आलिंगन करो, यह कहकर रतिलुब्ध उन दोनों को एक-एक करके बाँध दिया 1 क्षयको स्थिरता देनेवाली जलती हुई चितामें उस भयंकर भीमने उन्हें डाल दिया । सिकुड़ते हुए वे दोनों जल गये । और वह निर्दय अतासंग ( मुनि आर्यिका ) को जलाकर रस और मज्जा विश्रब्ध और गन्धसे दुर्वासित आकर अपने घरमें सो गया। ( रात में ) नींद में सोया हुआ वह बकता है- "अच्छा हुआ महिला के साथ मैंने दुश्मनको मार डाला ।" यह सुनकर वेश्या जान गयो । सूर्योदय होनेपर मुनि युगलको मरघट में जला हुआ देखा और राजा तथा पुरखतने अपना माथा पीटा।
धत्ता - उस वेश्याने अपने मन में सोचा कि यह पाप किससे कहा जाये ? क्योंकि चाहे इस जन्म में हो, या दूसरे जन्ममें, पाप पापकी खा जाता है ||१९||
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हाहाकार कर नरसमूह रो पड़ा। राजाने अपनी निन्दा की। वध करनेवालेको लोगोंने खोजा । वह पापमार्गी नगरमें जाकर प्रवेश कर गया। दृष्टरूप और नाम मिटाकर, भव्य भावसे airकर नष्ट हो गया। एक दूसरे ( मुद्धि और आर्थिकाने ) विनाशको करुणाभावसे लिया, वे दोनों ही संन्यासी मरकर सीधमं स्वर्ग में उत्पन्न हुए, कान्तिसे सुन्दर मणिकूट विमानमें । देव मणिमाली था और देवी चूड़ामणि थी, मानो मेघों में बिजली शोभित हो रही हो । उनकी आयु मुनिगणके द्वारा बतायो पाँच पल्य प्रमाण थी। किसीने जाकर उशोरवतीके प्रजाके साथ न्याय करनेवाले, स्वर्णवर्मा नामके विद्याधर राजासे कहा कि संयमसमूहका पालन करनेवाले तुम्हारे दोनों माता-पिता को किसीने मार डाला ।
चत्ता - हे देव, वह पुण्डरीकिणी नगरी आग की लपटोंमें जल रही है, मुनिके घातक संग्रहकारी दृष्ट गुणपालको भी युद्धमें मार दिया गया है ॥२०॥
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यह सुनकर सेना के साथ गरजकर वह चला जैसे दिग्गज हो । सेना सिद्धकूट पर्वतपर पहुँची। वह देवमिथुन भो वहां पहुँचा । देवने देवोसे कहानी कही कि तुम्हारे पुत्रने प्रयाण किया है। हे मुग्धे, हम लोगोंका मरण सुनकर और गुणपाल राजाके ऊपर क्रुद्ध होकर नगरवरको