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३०. ६.१२]
हिन्दी अनुवाद
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जब पशुओं और पक्षियोंमें प्रेम होता है तो मनुष्यका मन क्या विरहसे विदीर्ण नहीं होता? फिर वहीं जीवदयाफलसे सुन्दर पुष्कलावती देशमें विजयाथै पर्वतको दक्षिण श्रेणी में मोक्षकी नसेनी उशीरवती नगरी में आदित्यगति नामका विद्याधर राजा निवास करता था । तेजमें वह मानो प्रत्यक्ष कामदेव था । उसको पश्नी शशिप्रभासे रतिवेग ( कबूतर ) हिरण्यवर्मा नामक कामदेव के समान सुन्दर पुत्र हुआ। उस पर्वत में गौरी देश और भोगपुर नगरसे प्रसिद्ध उत्तरश्रेणी में वायुरथ नामका विद्याधर आरूढ़ था, जो स्वयंप्रभा नामक विद्याधरीका पति था । वहाँपर वह रतिषेणा नामकी पक्षिणी मरकर उन दोनोंसे इस प्रकार जन्मी, मानो यक्षिणी हो । वह कन्या प्रभावतीके नामसे प्रसिद्ध थी । रूपमें उसकी प्रशंसा कामदेवके द्वारा की जाती थी । एक दिन कुमार (हिरण्यवर्मा ) नन्दनवन की क्रीड़ाके लिए कहीं गया हुआ था । उसने देखा कि एक कबूतर जोड़ा क्रीड़ा कर रहा है । उस युवा कुमारने पूर्वजन्म की याद कर पट्टपर जो पक्षीरूपमें आचरित सम्माननीय बीता हुआ जन्म कथानक था, वह लिख डाला । घत्ता - स्वयंवरवाली उस मृगनयतीने अपने जाते हुए उसने एक कबूतर - जोड़ा देखा ||५||
प्रियको लक्षित नहीं किया। अपने पाससे
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अपने पूर्वजन्म की याद कर धरतीपर गिर पड़ी। उसे सिर और उरललपर सींचा गया। रतिषेणा जी मध्य में क्षोण प्रभावती रतिवर विरहसे पीड़ित हो उठी। कंचुकीने राजासे निवेदन किया कि कन्या की देह लोटे रोगसे नष्ट हो गयी है । स्वयंवरसे क्या ? हे विद्याधर, आओ आओ चला जाये । प्रियने उसे चित्रपट भेजा है जो उसे अपने हृदयमें अच्छा लगा । मन्दिरमें जाकर उसने गति प्रतियोगिता प्रारम्भ की है। जिस पुष्पमालाको वह स्वयं छोड़ती है, यह सुमेरु पर्वतको प्रदक्षिणा के लिए दौड़ी, और विद्याधरोंके आगे कुमारी पहुंची, तथा जबतक वह उसे ले नहीं लेती, तबतक सुख नहीं पाती। पुत्रीकी गतिको कौन पा सकता है। जबतक पिता हृषैसे रोमांचित होता है और मन्त्रोके वचनको देखनेके लिए जाता है और जबतक विद्याधर समूह जोत लिया जाता है, तबतक हिरण्यवर्मा वहाँ पहुँचा ।
घत्ता -
-- फिर सुमेद पर्वतसे पुष्पमाला गिरा दी जाती है और दोनों साथ दौड़ते हैं। शीघ्र ही परिक्रमा देते हुए उन्हें नाग, किन्नर, चन्द्रमा और सूर्यने देखा ||६||
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