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३०. १०.१२]
हिन्दी अनुवाद
यह सुनकर पति और पत्नीकी सुमति बढ़ गयी और वे अपने घर गये । वायुरथ विद्याधर मेशिखर देखकर विरक्त हो गया और उसने दीक्षा ग्रहण कर ली। उसका पुत्र मनोरय गहोपर बैठा । आदित्यगति विद्याधर भी जेनत्वको प्राप्त हुआ। उसके सप्तांग प्रकारवाले राज्यमें हिरण्यवर्मा स्थापित हो गया। अपनी पुत्री रतिप्रभा उसने सुखके समूह मनोहर पुत्र चित्ररथके लिए दे दी। एक दूसरे दिन उन्होंने आकाशके प्रांगण में रमण किया और धान्यमालक बनके भीतर भ्रमण किया। सर्प सरोवरके चिह्नोंको देखकर और पूर्वजन्मको जानकर दोनों अपने नगर आये। उन्होंने सुवर्णवर्माको पुकारा और राज्यपर प्रतिष्ठित कर दिया। ऋषिकुलबलयके चन्द्र श्रोपाल मुनीन्द्रके चरणमूल में चारणमुनि होकर पति ( हिरण्यवर्मा ) शोभित हैं। गुणी गुणोंसे महान वह उन्नति पाते हैं। गुणवती आर्यिकासे प्रभावती दीक्षित हुई। उसने करणानुयोग और चरणानुयोग शास्त्रोंके अर्थों को सीखा । कोसे विरक्त सभी भव्य पुण्डरी किणीमें अवतीर्ण हुए।
__ पत्ता-आर्यायुगलसे विराजित मुनि नगरके बाहर प्रवर उद्यानमें ठहर गये। युगमात्र है दृष्टि जिसको ऐसो आर्या गुणवती विहार करती हुई उस प्रियदत्ताके घर आयो ||९||
सेठानीने विनय और प्रणामसे उन्हें रोक लिया और स्निग्ध भोजन कराया। फिर योग्य आसन देकर उसने प्रभावतोसे प्रणाम करके पूछा-"तुमने अपने पतियौवनका तिरस्कार क्यों किया ? और तारुण्यमें तुमने वनका सेवन क्यों किया?" यह सुनकर हित, मित और सुमधुर बोलनेवाली तपस्विनीने कहा, "यहींपर सज्जनोंके नेत्रोंको आनन्द देनेवाले इस तुम्हारे ही घरमें, दूसरे जन्ममें हे आदरणीये, हम कबूतर थे विनोद करनेवाले हम दोनोंको ( कबूतर-कबूतरी) क्या तुम नहीं जानती ? रतिषेणा और रतिवर नामवाले, अपने कण्ठ शब्दोंसे कामको संकेत करनेवाले। जीवदयाके लाभसे हम दोनोंने मनुष्य जन्म पाया और इसीलिए हम दोनोंने अपना मन नियमित कर लिया। बताओ तुम्हारा कुबेरकान्स वर कहाँ है ? सुखका जनक वह, इस समय कहाँ है ?" इसपर सेठानी कहती है-हे संयमधारिणी और जिनके चरणकमलोंकी मधुकरी, प्रियकी कथा सुनिए।
__घत्ता-एक दिन घरपर आयी हुई जिन संन्यासिनोको आहार देकर उनके शुभकारक दोनों चरणोंको नमस्कार किया ।।१०।।