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२०.४.१२] हिन्दी अनुवाद
२६३ दूसरेपर विरक्स मत होमो, दोनों ही कामका सुख भोगो।" इन शब्दोंसे वे दोनों पुनः अनुरक्त हो गये । वे कण चुगते और दूसरेपर आसक्त होते हुए क्रीड़ा करते हैं। तीन ज्ञानरूपी दिवाकरवाले के जंघाचारण मुनि आकर सुमेरु पर्वतपर विजया पर्वतके निकट, जहां कि गजोंको देखकर सिंह उनके विरुद्ध दहाड़ते रहते हैं, स्थित हो गये। अमृतमती और अनन्तमती भी और वे तीनों आयिकाओके द्वारा भी जाकर, कामदेवके बाणोंका निवारण करनेवाले आदरणीय मुनिवरसे पारावतके सम्बन्धके विषयमें पूछा।
पत्ता-जिस प्रकारसे यह मानव ज़ोहा मरकर भवसंकट में पड़ा था और जिस प्रकार उन्होंने केवलज्ञानसे जाना था, वह मुनि सब बताते हैं। कुछ भी छिपाकर नहीं रखा ।।२।।
किस प्रकार वैश्यकुलमें दो बालक उत्पन्न हुए थे-रतिवेगा और सुकान्ता नामसे । किस प्रकार उनका विवाह हुआ और किस प्रकार भागे, किस प्रकार सामन्त शक्तिषणको शरणमें गये। किस प्रकार पुष्ट पीछे लग गया, किस प्रकार उसे डांटा गया और कर्णकटु अक्षरोसे निन्दित किया गया। सज्जनको संगतिसे किस प्रकार प्रतोंका पालन किया और किस प्रकार सुख सामर्थ्य से जन्म लिया। किस प्रकार शत्रुने उनके घरको जला दिया और किस प्रकार वधूवर पक्षियोनिको प्राप्त हुए? कामरूपी हरिणके विध्वंसके लिए अखेटकके समान मनिनाथने जिस-जिस प्रकार कहा उस-उस प्रकार कान्ताओंने आकर और लोकपालके पुरवरमें प्रवेश कर शुभ संयोगवाले शिथिलित स्नेह समस्त प्रावकलोकसे यह सब कहा ।
वत्ता-पह सुनकर जनपदको धर्ममें रुचि हुई। विकसित मुखवाली मृगनयनी प्रियदत्ताने गुणवती और यशोवती बायिकाके चरणोंके मूलमें व्रत ग्रहण कर लिया |३||
घनवती सेठानी भी घर छोड़कर सम्यकदर्शनमें स्थित होती हुई आर्यिका हो गयो। और कुबेरसेना रानी भी दीक्षा लेकर मदीन हो गयो। एक बार किसो नौकरने नहीं देखा और विधिके विधानसे प्रेरित होकर कबूतर-कबूतरीका वह जोड़ा घूमता हुआ, उद्यानवाले नगरके सीमान्त प्राममें चला गया। अबतक वह अपनी गर्दन मुकाकर चोंचसे कण निकालता है और बाड़के समीप परता है, तभी वह दुष्ट, उन्मत्त (सरदुंदुर और सेठ) के आमिषका भोजन करनेवाले, नवमघुबिन्दुके समान पिंगल आँखोंवाले, अशुभ तीखे और कुटिल नखोंके शरीरवाले बिलावके रूपमें उत्पन्न हो गया । बाइके विवरसे शीघ्र निकलकर उसने कबूतरको कण्ठमें पकड़ लिया। कबूतरी सब ओरसे घूमकर उसपर झपटती है। अपने पतिके पराभवपर स्त्री भी कुपित हो उठती है। पूर्वजन्मके देरके कारण कांतोंसे भयंकर उस बिलावने कसमसाते हुए उस कबूतरको खा लिया।
पत्ता-पतिके मर जानेपर दुःखसे विदारित कबूतरीने विधिको बलयान कहा और अपनेको तुणवत् समझती हुई उसने सापके मुंहमें गल दिया !