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हिन्दी अनुधाव
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दोनोंके पैरोंकी लालिमा प्रगलित हो गयी, दोनोंके मुखकमल मुकुलित हो गये। उस शत्रुके द्वारा वे किसी प्रकार मारे भर नहीं गये थे। उनके शरीर वृक्षोंके काँटोंसे विदीर्ण हो चुके थे। पसीने से शरीरका सब मण्डन घुल चुका था। दोनों पशुकुलकी भिड़न्त देख रहे थे । सूर्योदय होनेपर दे दोनों वहाँ पहुंचे जहाँ कि अटवीश्रीका स्वामी ठहरा हुआ था। पीछे लगा हुआ ही वह वहाँ इस प्रकार पहुँच गया जैसे कि चल पापियोंके पोछे, कामदेव पहुँच जाता है। वहाँ उन दोनोंने शक्तिषेणको शरण ली, मानो शिशुगजोंने महागजकी शरण ली हो। कहाँ हैं वे, भागनेवालों के लिए मैं भरण माया हूँ; लो, वे दोनों तुम्हारी शरणमें चले गये। दुश्मनको सुनकर उस शक्तिषेणने अपनी तलवार दिखायी उससे किरात भग्न हो गया। और मलिनमान वह शीघ्र वहाँसे भाग गया । वहाँ अन्धकार क्या कर सकता है, जहाँ सूर्य चमक रहा है ।
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धत्ता - उसने उपेक्षा नहीं की, वरन् वरवधूकी रक्षा की और शत्रुपक्षको दोषी ठहराया। जगमें धनसे श्रेष्ठ ( धनवरिस ) सत्पुरुषों का भूषण दोनोंका उद्धार करता ही है ||१५||
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इतने में वृषभ, गज, खच्चर, ऊँट और घोड़ोंके वाहनोंवाला, पर्वतको तरह धीर धनेश्वर, अपनी पत्नी धारणीके मुखमें अनुरक्त सार्थवाह मेदस वहाँ आया। हाथियों और घोड़ोंके शब्दों से पर्वतशिखरको बहरा करता हुआ वह पास हो अपना डेरा डालकर ठहर गया। इतनेमें वनमागंसे दो चारण मुनि वहाँ प्रविष्ट हुए। शरणमें आये हुए उन दोनों को शक्तिषेणने देखा । उस महायशाळेने 'ठहरिए कहा। विनयरूपी अंकुशसे वे दोनों महामुनिवर ठहर गये। पुण्य लेने के लिए उसने मुनिश्रेष्ठोंके लिए योग्य नानाविध आहार भावपूर्वक दिया। देवोंने आकाशतलमें नगाड़े बजाये तथा पांच आश्चर्य प्रकट किये।
धत्ता - मणियोंको लो, पुण्यको देखो, जिसका मुखरूपी पूर्णचन्द्र खिला हुआ है और जो तुम्हारे लिए प्रणय उत्पन्न करनेवाला है ऐसा मेरुदत्त घर आ गया है ||१६||
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वहाँ उस मेरुदत्तने उसका दान देखकर धारणीके साथ यह निदान बांधा कि अगले जन्म में दुःस्थित लोगों का कल्याणमित्र यह मेरा पुत्र हो। तब वहीं रात्रि में चोरको तरह धरतीपर खलता हुआ एक लंगड़ा आया । वणिक्ने अपने मन्त्रीवसे पूछा - "बताओ कि इसका गतिप्रसार