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२५. ११.१२]
हिन्दी अनुवाद पत्ता-विद्याधर राजा ननोगति और पवनगति एक क्षणमें उत्पलखेड नगर पहुंच गये । कल्याण चाहनेवाले बच्चोंघ राजाने प्रणाम करते हुए उन्हें देखा ॥२॥
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उन्होंने उसके लिए मणिमंजूषा दी। उसने उसका ऊपरी खण्ड खोला। फैलाकर उसने शोध पत्र पढ़ा कि किस प्रकार राजाओंका राजा योगी बन गया है और किस प्रकार दी जाती हुई भूमि छोड़कर अमिततेज भी उसका अनुगामी हो गया है ? और किस प्रकार पुण्डरीकके सिरपर पट्ट बांध दिया गया है। किस प्रकार अपने यौवनके अहंकारको छोड़ते हुए, राजस्त्रियों तथा धरती छोड़ते हुए माण्डलोक राजाओंने दीक्षा ग्रहण कर ली। किस प्रकार पुत्रोंने तथा काम-क्रोधके समूहको नष्ट करनेवाली पण्डिताने दीक्षा ले ली। किस प्रकार राजा अमिततेज भी चला गया । इसलिए तुम अब अपने भानजेका पालन करो । जो जैसा था, वैसा लेखने कह दिया । तब उस सुधीने सुधीके चरित्रकी सराहना की कि देवने यह अच्छा किया जो कामको पीड़ित करनेवाला
और संसाररूपी अन्धकारके लिए सूर्यके समान तप ग्रहण कर लिया। उसके पुत्रने भी अच्छा किया जो उसने नववयमें व्रत संग्रहीत कर लिया। ..
पत्ता-वह राजा धन्य है जिसने कामको छोड़कर अपने मनमें अरहन्तका ध्यान किया। निधिका घड़ा दिखानेवाली गृहदासी पुथ्वीके द्वारा कोन खण्डित नहीं किया गया ? ||१०||
यह विचारकर राजा वनजंघ तुरन्त चला। उसकी यात्राके नगाड़ों की आवाज़ दिशाओं में फैल गयो। सर्वत्र रथोंसे नहीं जाया जाता। जम्पान स्खलित होता है, मातंग ठहर जाता है। अश्ववरोंको संचार नहीं मिल पाता। छत्र ऐसे मालूम होते हैं मानो श्रीमतीके मुखरूपी चन्द्रमा का उपहास करनेवाले खिले हुए कुसुम हों, कामिनियोंके हाथोंमें चमर चल रहे हैं मानो लाल कमलोंपर हंस हों। अच्छे बाँसपर लगा हुआ ध्वज हो, जैसे वह सुपुत्र कुल और कोतिका कारण हो । लीलापूर्वक माण्डलीक राजा भी मिलकर जाते हैं और मतिमें श्रेष्ठ ब्रहस्पतिके समान मन्त्री भी। दिव्यदृष्टि आनन्द नामका पुरोहित, कुबेरके समान सेठ धनमित्र । शत्रुको कपानेवाला मकंपन सेनापति भी हाथमें तलवार लेकर चल पड़ा । इस प्रकार ग्राम-पुर और नगरों में रहते हुए वे लोग कई दिनोंमें उस वनमें पहुंचे।
पत्ता-वहां उन्होंने चंचल लहरोंसे चपल और खिले हुए कमलोंवाले सरोवरको इस प्रकार देखा, जैसे आये हुए राजाके लिए धरतीरूपी सखीने अघंपात्र ऊंचा कर लिया हो ॥११॥
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