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हिन्दी
आप श्री&rs fair देव हुआ। वराहका जीव भी देव हुआ कुण्डलिल्ल नामका सुन्दर कान्तिवाला । शरद मैत्रोंके समान नन्दविमानमें वह ऐसा लगता, जैसे एक क्षणके लिए मेघमें विद्युत् समूह शोभा देता है।
घत्ता -- नकुलका जीव, मनुष्य मरकर कुरुभूमिमें मनुष्य हुआ जो कान्तिमें मानो दूजकर चौद था। इस प्रकार अपने शुभकर्मसे प्रेरित होकर मनरथवाला ||१०||
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जो पूर्वजन्म में वानर था, वह कुरुभूमिके मनुष्यके रूपमें सुख भोगकर नन्दावतं विमान में उत्पन्न हुआ, सुन्दर मनोहर नामके देवके रूप में। पण्डितसमूहको अच्छा लगनेवाला जो स्वयंबुद्ध था और जिसने महाबलको धर्म में प्रतिष्ठित किया था त्रिलोकको प्रिय लगनेवाला वह प्रीतंकर नामका जिनवर केवली हुआ। देवसहचर श्रीधर ज्ञानसे यह जानकर उसकी वन्दनाभक्ति करने के लिए गया । देवसभाके भीतर प्रवेश करके और गुरुभक्ति कर अपने गुरुकी खूब स्तुति की - 'हे परमेश्वर ! भनविवरमें गिरते हुए तुमने मुझे हाथका सहारा दिया, तुम स्वयं बुद्ध बुद्ध हो, दुनियामें बुद्ध माने जाते हैं ? आपने हृदय विशुद्ध कर दिया है। आपने अशेष तत्वका साक्षात्कार कर लिया है, आप धनी और निर्धन में समान हैं। आप मेरे लिए आधारभूत अभग्न स्तम्भ हैं, मैं तुम्हारे चरणयुगलकी शरण गया था।
बता -- मिथ्यादृष्टि अत्यन्त दृष्टमन पापकर्मा धर्महीन और बेचारे वे हमारे मन्त्री कहाँ उत्पन्न हुए है कामदेवके मदका नाश करनेवाले कृपया बताइए ?" ॥। ११ ॥
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आदरणीय वह बताते हैं- " वे दोनों सम्भिन्नमति और सहस्रमति खोटे स्थानवाले भयंकर, कष्टको परम्परासे युक्त नित्य अन्धकारवाले नित्य-निगोद में गये हैं । शून्यवादके विवरण से दूषितमति शतमति दूसरे नरक में गया ।" यह सुनकर, श्रीधर वहां गया, जहां नरकमें वह था । अन्धकारमय उस कुविवर में प्रवेश कर अपने विमान में बैठे हुए श्रीधरदेवने कहा, "हे महाबल स्वयंमति सुनो, मैं वही यशसे पवित्र विद्याधर राजा है जिसने बहुत समय तक अलकापुरीका भोग किया । तुम्हारा स्वामीश्रेष्ठ और शत्रुरूपी हाथी के लिए सिंह । सुरदुन्दुभिका गम्भीर निनाद जिसमें है, ऐसे विवाद के द्वारा तुम तोनोंको जीतकर गुरुके द्वारा जिन वचनों में नियुक्त में सुखकी