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२८. ३५.१५]
हिन्दी अमुवाव
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यहाँ रण शूरोंको अस्त कर रहा था और यहाँ सूर्यास्त हो गया। यहाँ वोरोंका खून बह गया और यहाँ विश्व सन्ध्याकी लालिमासे शोभित था। यहां काल मद और विभ्रमसे रहित हो गया था और यहाँ धीरे-धीरे रात्रिका अन्धकार फैल रहा था । यहाँ गजमोती बिखरे हुए पड़े थे
और यह िनक्षत्र उदित हो रहो, यहाँ जय राजको यस चा हो रहा था और यहां चन्द्रमाका किरणसमूह दौड़ रहा था। यहाँ योद्धाओंके द्वारा चक्र छोड़े जा रहे थे और यहाँ विरहमें चक्रवाक पक्षी विलाप कर रहे थे, इनमें कौन निशागम है और कौन सैनिकोंका युद्ध है ? मटजन यह नहीं समझते और आपसमें युद्ध करते हैं। तब उन्हें चांपते हुए मन्त्रियोंने हटाया और रात्रिमें युद्ध करते हुए उन्हें मना किया। युद्धके रंगमें रोषसे भरे हुए दोनों सैन्य वहीं ठहर गये।
पत्ता-युद्धके मैदानमें राजाके काममें मत्युको प्राप्त हुए, तथा तीरोंके शयनतलपर सोते हुए प्रियको, रात्रिमें सहेलियोंने भावी पत्नीको दिखाया ।।३४॥
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ईष्या कारण रूठी हुई कोई बोली-"तलवारकी धार प्रियके हृदयमें प्रवेश कर गयो, जो उसमें अनुरक है, उसे मैं कैसे अच्छी लग सकती हूँ ? हतभाग्य में प्राणोंसे मुक्त क्यों नहीं होती ?" कोई कहती है-“हे प्रिय, जो मैंने स्वीकार किया था वह हृदय तुमने सियारिनको क्यों दे दिया? जिसे मैंने पहले अपने दांतोंके अग्रभागसे काटा था वह ( अब ) पक्षिणीसे खण्डित है।" कोई कहती है-'हे प्रिय, हाय मत बढ़ाओ। हे कापालिक, तसे अलंकृत शिरके लक्षण क्या देखते हो, तुम मेरे लिए निर्दय और दुर्विदग्ध हो । जिसे मैंने स्तनोंसे चांपा था वह उर गजवरोंके दांतों धारा अवरुद्ध है।" कोई प्रणयसे स्निग्ध प्रगचिनीके लिए यान स्वरूप ? अपने प्रियको वीणाओंको खण्डित कर देती है। कोई कहती है कि शरीररूपो स्तम्भ समझकर, वह शत्रुओंके द्वारा नुपश्रेष्ठके पास ले जाया गया। स्वामीने उसे आंतोंसे बांध दिया और कटारीसे सिर काट लिया। जिसने अपने कठिन पाशसे शत्रुचक्रकी निमग्न कर लिया है ऐसा कोई मेरे रपके ऊपर स्थित है। किसीने राजाके ऋमको दूर करनेवालो हाथीको रलावली अपने दोनों हाथोंसे ले लो, बताओ समोंके द्वारा यहाँ क्या नहीं किया जाता ?
पत्ता-शत्रुको मारकर, फिर बादमें शान्त होकर और सर (तोर) सहित धनुष (शरासन ) छोड़कर कोई गजवरको तृणवाय्यापर मरकर संन्यास ग्रहण कर लेता है ।।३।।