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२८. ३३.१० ]
हिन्दी अनुवाद
अग्नि तीर छोड़ा, सुनमिने मतवाला महागज तीर छोड़ा, मेघप्रभने दंष्ट्राओंवाला सिंह तीर छोड़ा। इस प्रकार, सुनम जो-जो तोर छोड़ता है, उस-उस तीरको मेघप्रभ ध्वस्त कर देता है । धत्ता - विद्याधर राजा सुनमि शत्रुके तीराका सह नहीं सका, और गरियाल बेलकी तरह अपना मुँह टेढ़ा करके संग्रामभारको छोड़कर हट गया ||३१||
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गजों और आठों चन्द्रकुमार विद्याधरोंके होते हुए भी सुनमीश्वरके भग्न होनेपर, मेघप्रभके अस्त्रोंसे पराजित और भागता हुआ वह देवोंसे भी लज्जित नहीं हुआ। जिसने मदरूपी जलसे मधुकर कुलको सन्तुष्ट किया है, जिसका कैवा कुम्भस्थल आकाशको छूता है, जिसमें ध्वनि करते हुए स्वर्ण घण्टियों का कोलाहल हो रहा है, जो सूंड़के सीत्कारोंसे धरणीतलको सींच रहा है, जिसके दोनों उज्ज्वल दांत लोह श्रृंखलाओंसे बंधे हुए हैं, ऐसे मदगल महागजको प्रेरित करते हुए जयकुमारने कहा - "हे मर्ककीति, तुम शीघ्र आओ । हे सुन्दर, तुम आज भी देर क्यों करते हो ? तुमने राजपुत्रत्व खूब अच्छी तरह निभाया, त्रिभुवन में अपयशका कीर्तन स्थापित कर दिया है कि जो तुम परस्त्री योद्धासमूहको मारनेवाली देवकुमारी में अनुरक्त हो ? इससे तुमने राजाकी आज्ञाको नष्ट कर दिया है। हे निर्दय, तुमने चार वृत्ति प्रारम्भ की है।" यह सुनकर भरत राजाके धूर्त पुत्र अकीर्तिने उत्तर दिया
वत्ता----"तुम मेरे समीप आओ। सुलोचना जैसी मेरे घरमें घटदासी हैं। पूर्वसे ही आश्वस्त मैं तो तुम्हारे बाहुबल के मदके पीछे लगा हुआ हूँ ||३२||
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जिस बलसे तुमने मेघमण्डल जीता है और देवों सहित स्वर्ग में इन्द्रको सन्तुष्ट किया है वह बल तुम हमें बताओ हम देखेंगे। आज तुम्हारो परीक्षा करेंगे। अभी तुम आवर्त और किरातोंके साथ लड़े हो, तुम बेचारे राजाओंके साथ भी युद्ध करते हो !" ठीक इस अवसरपर सिन्दूरकणोंसे अरुण उसके गज जयकुमारके गजसे आकर भिड़ गये। वे माठोंके आठ चन्द्र विद्याधर कुमारोंसे प्रेरित थे और कक्षरिक्ख ( करधनी) और वस्त्रों से शोभित थे। युवराज जयकुमार ने भी एक हाथी आगे बढ़ाया, मानो इन्द्रने ऐरावत चलाया हो । शत्रुके श्रेष्ठ गजसे आहत वे गज दांतों, गिरती हुई नयी झूलतो बांतों, सरस उछलते हुए मांसखण्डों, दो टुकड़े होती हुई दृढ़ सूँड़ों
घता - के साथ गिर पड़े और नष्ट हो गये। मानो पहाड़ ही धरतोपर आ पड़ा हो । आकाश में स्थित देवोंने 'हे नृप, जय जय जय' कहा ||३३||