________________
हिन्दी अनुवाद
१७७ मसिवर सुबाहु हुआ। आनन्द भी महन्तबाहुके नामसे उत्पन्न हुआ। अकम्पन अहमेन्द्र पोठ हुआ। और धनमित्र भी वहीं पर महापोठ हुआ। वनजंधके जन्ममें, जबकि वह उत्पलखेड नगरका अधिवासी राजा था, उस समय उसके जो मुत्य थे वे भी ( पूर्वोक्त) विधिके वशसे, यशके साथ चारों ही उत्पन्न हुए। वे देवेन्दगजपतिके समान गतिवालो उसी महासती देवीके गर्भसे जन्मे । स्नेहसे पूर्ण जेठे सगे और अपने भाइयों के लिए देष्य कोन होता है ? पूर्व जन्ममें किये गये कर्म छन्दका पालन करनेवाला वह प्रतोन्द्र केशव भी वणिकपुत्र कुवेरका सुरतिमें अपनी मति आसक्त रखनेवाली अनन्तमतीसे पुन उत्पन्न हुआ। : ... . ....... ....
धत्ता गम्भीर नगाड़ोंके बजनेपर बन्धुवर्ग अत्यन्त आनन्दित हुआ। सम्मान और धनदानके साथ उसका नाम धनदेव रखा गया ॥२।।
३
एक दिन शीघ्र आये हुए लौकान्तिक देवोंने उस ( वज्रसेन से कहा कि तुम मोहित क्यों हो? क्या तुम्हारी हितबुद्धि चली गयी, जो तुम नारीमें रत रहनेवाले, इन्द्रियरूपी अश्वोंके द्वारा यहा अनुरक्त हो। हे देवदेव, जहाँ तुम त्रिलोकनाथ हो वहां किसी दुसरेके लिए बोधिलाभ क्या होगा? शान्ति करनेवाले लोकान्तिक देवोंने इस प्रकार उस बच्चसेनको सम्बोधित किया। तब बज्रनाभिके लिए श्रृंगारभार वैभवके अहंकारका प्रतीक राजपट्ट बांधकर उसने आम्रवनमें एक क्षणमें संन्यास ले लिया। तीर्थकरने अपने हितपर विजय प्राप्त कर लो। पिताको धर्मचक्र उत्पन्न हुआ और पुत्र को शस्त्रशालामें चक्ररत्न । पिताने मोहचकको जीता, पुत्रने भी शत्रुचक्रको जीत लिया। पिताको निधि समवमरणमें स्थित थी, पुत्रके भी नव-नव निधियों शरणमें आयौं। पिताकी इन्द्र सेवा करते है, पुत्रके भी गणबद्ध देव अनुचर हैं। पिता धर्मश्रेष्ठके चक्रवर्ती हुए, पुत्र छह पण्ड धरतोका चक्रवर्ती राजा हुआ।
पत्ता-फिर शुभदात्री श्री और धरतीको पुराने तिनकेके समान समझकर, अपने पुत्र वज़दन्तको बादमें राज्य सौंपकर ॥३||
जिसको अंगुलियां ही दल हैं, नखोंको प्रभा केशर है, जो सुरवररूपी हंसावलीके शब्दसे शब्दायमान है। मुनीन्द्ररूपी भ्रमरोंसे जिसका मकरन्द पिया जा रहा है, ऐसे पिताके चरणरूपी कमलकी सेवामें आ पहुंचा। धरणीश्वर विजय और वेजयन्सने भी प्रवज्या ले ली। संवेग और विवेकको प्राप्त धीर जयन्त वरादिने भी तप ग्रहण कर लिया। राजा होते हुए बाह-महाबाहुने,
२-२३