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२०. १३.१०] हिन्दी अनुवाद
१८७ पत्ता-कितने बलभद्र, कितने नारायण, कितने प्रतिनारायण, मुझ जैसे कितने चक्रवर्ती राजा और आप जैसे कितने तीर्थकर उत्पन्न होंगे ॥११॥
यह सुनकर देवने इस प्रकार कहा-मुझ जैसे रागद्वेषसे रहित तेईस जिनवर इस भुवनमें होंगे जो श्रीधर्मतीर्थको प्रकट करेंगे। जिस प्रकार इनके, उसी प्रकार उन बाईस तीर्घकरोंके
आगामी शरीर ग्रहण करने और छोड़नेवाले जन्मान्तरोंका कथन उन्होंने किया और कहाजिसने अपने मुखचन्द्रसे चन्द्रकिरणों को पराजित कर दिया है, ऐसा तुम्हारा पुत्र और मेरा नाती यह मरीचि श्री वर्धमानके नामसे चौबीसवा विषगनाथ और तीर्थकर होगा। तब जिसका द्विज कपिल शिष्य है ऐसा महान् भरतका पुत्र यह सुनकर प्रसन्नचित्त होकर खूब नाचा। यह मूर्ख होकर मिथ्यात्वको प्राप्त होगा। मेरा अहंकार छोड़कर मरेगा।
पत्ता-कपिलका गुरु तथा सांख्यसूत्रोंमें निपुण देव होगा। विनय करनेवाले अपने पुत्रसे आदरणीय ऋषभजन बार-बार कहते हैं ॥१२॥
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पोका पालन करनेवाले क्रोडाके विपुत शैलके समान बलवान् पहाड़ों सहित धरतीको धारण करनेको लोलावाले तुम्हारे-जैसे न्यायानुगामी ग्यारह चक्रवर्ती भूमितलपर होंगे। नव बलभद्र, नव नारायण भी होंगें, इसमें भ्रान्ति नहीं है। और नी ही प्रतिनारायण भी धरतीका भोग करेंगे । और भी तेईस कामदेव, रोवभाववाले ग्यारह रुद्र, तथा मुकुटबद्ध बहुत-से नामवाले माण्डलीक राजा उत्पन्न होंगे। तुम्हारा क्षात्रधर्म और मेरा परमधर्म और भी जो विशिष्ट कर्म हैं, धे सब युगान्तके दिनोंमें नष्ट हो जायेंगे। अग्निमय और विषमय मेघोंकी वर्षा होगी। तब जिन्होंने तृष्णारूपी कदलीकन्दका नाश कर दिया है ऐसे जिनेन्द्रकी राजाने स्तुति की
पत्ता हे जिनसंत भगवन्त, आपके दिखनेपर पाप नष्ट हो जाता है। बोर मनुष्यको सम्पूर्ण पवित्र केवलशान उत्पन्न हो जाता है ॥१३॥