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२८. १२.३]
हिन्दी अनुपाव
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(यह सोचकर कि ) काले और लाल धब्दोंवाले शरीरसे शोभित विजातिसे नागिन कहाँ लग गयी । इस प्रकार परिवारसे आहत होकर वह अपने यारके साथ चली गयो । मैं कास पुष्पकी कान्तिके समान अपने घर वाया सा नया । सनिमें रायतकालमें नागिनना बह विलास अपनो पलीको बताया। मैं जबतक खोटी महिलाओंके चरितको बताऊँ और प्रिय सम्भाषण करूं कि इतने में विविध मामरणोंसे घरको रंजित करनेवाला एक सुरवर अवतरित हुआ। मैंने उससे पूछा, 'मुझे क्यों देखते हो, मुझपर विकार-भरी दृष्टि क्यों करते हो' । उसने कहा-'क्या नहीं जानते, लोगोंको तुम्हीं धर्मका व्याख्यान करते हो, किसीका भी दोष ग्रहण नहीं करना चाहिए। तुम्हें पंगुल-पंगुल ( पुंश्चली-पुंश्चली ) क्यों कहना चाहिए था। तुमने जन्मसे अनुरक्त मेरी कुलपुत्रीको करकमलके कमलके द्वारा जो ताडित किया था।
पत्ता-उसे समस्त परिजनोंने पत्थरों और हजारों दण्डोंसे गिरा दिया। कांपती हुई देहवालो वह, अपने यारके साथ सांससे मुक्त हो गयो ।॥१०॥
व्रत धारण करनेवाला नाग पहले हो मर गया और मैं भवनवासी नागकुमार हुमा और वह नागिन समपरिणामसे गंगामें काली नामकी देवता हुई है। हम दोनों भी मिल गये और तुम्हारी उस कुचेष्टाको याद कर उसे मनमें धारण कर लिया। मैं यहाँ माया और जबतक मैं तुम्हें मारूं और क्रुद्ध होकर तुम्हारे वक्षस्थलको फाड़ दूं, कि इतनेमें मैंने जान लिया कि तुम पुण्यशाली हो, चरमशरीरी और शीलसे प्रसाधित हो । यह कहकर समताके जलसे अपनी क्रोषाग्नि शान्त करते हुए उस नागेशने मुझे दिव्य परिधान दिये, और असामान्य आभूषण दिये । उस अवसरपर अत्यन्त सरस बोलकर वह वहाँ गया जहाँ नागराज बिलमें उसका भवन था। हे देव सुनिए, जीवका संसारमें धर्म हो शाश्वत सम्पत्ति करनेवाला आधारभूत वृक्ष है।
पत्ता-कुरुनाथने हंसकर कहा कि जिसकी धर्ममें निश्चल मति (या निश्चल धर्ममति) होती है-हे देव, भरतके समान धरतीको सिद्ध करनेवाले भी उसके चरणोंमें पड़ते हैं ॥११॥
इस प्रकार जैसे ही जयकुमारने कहानी कही कि वैसे ही दूसरा मन्त्री वहां आ पहुंचा। जिसकी गर्दनमें मोतीका हार लटक रहा है ऐसे प्रतिहारने राजासे उसकी भेंट करायी। उसने
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