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२८. २३.५]
हिन्दी अनुवाद
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इसलिए क्रोध से भरे हुए दुःखको इच्छा रखनेवाले दोनों हो दुष्टोंसे - जयकुमार और काशीराज अकम्पनसे युद्ध में भिड़कर, सिर काटकर सुन्दरीको इस प्रकार ले लिया जाये, जैसे कामपुरी हो । विद्वानोंके द्वारा निन्दनीय, उसके द्वारा कहे गये कलहके उद्देश्यको राजाने भी इच्छा की। यह सुनकर, राजाको प्रणाम कर, थोड़ा हैसकर, कार्य छोड़कर, अपायबुद्धि महामति मन्त्री कहता है- “ भूख से क्षीण, कोपसे विलुप्त, मानमें ऊंची, भयसे खिन्न, उन्मत्त दुःखसे सतायो हुई, निद्रा में लीन, गमनमें आसक्त, स्वयं होसे विरक्त, दूसरे में अनुरक्त है । है विश्व कमलके रवि, भरतेश्वर-पुत्र, प्रकट वेश्याके समान, सुहके समान हाथबाकी, उसका आलिंगन नहीं करना चाहिए; उसके साथ रमण नहीं करना चाहिए। यह परकुलपुत्री कहा जाता है। इसे उड़ाते हुए, यशको मेला करते हुए, न्यायको छोड़ते हुए, फुमार्ग में जाते हुए, हे युवराज ! तुम्हारी इहलोक और परलोककी गति अवश्य नष्ट होगी। तुम्हारे द्वारा क्या कहा जा रहा है।
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पत्ता - शशि- दिनकर जलधर- अग्नि-जल-गगन-धरती और पवन, तुम और तुम्हारे पिता, हे सुन्दर! जनजीवनके कारण हैं, इसे तुम निश्चित रूपसे जातो ||२२||
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_trance द्वारा अथवा दोनके द्वारा, अकुलीनके द्वारा अथवा कुलीनके द्वारा स्वयंवर में ली गयी कन्याका अपहरण नहीं किया जाता। इससे हृदय भारी पापसे लिप्त होता है। यह मार्ग तुम्हारे पितामह (ऋषभ ), तुम्हारे पिता ( भारत ) और मनुसमूहने प्रकाशित किया है । इसका उल्लंघन कर जो प्राणियोंको सताता है, वह मनुष्य अपयश और दुर्गतिको प्राप्त करता है।" लेकिन यह सब कहनेपर भी युवराज अर्ककीति प्रतिबुद्ध नहीं हुआ, उलटे जैसे जगमें घी