________________
२८. २५, ४] हिन्दी अनुवाद
२१५ डाल दिया गया हो। वह विरुद्ध होकर कहता है कि "जब उसे बीरपट्ट बांधा गया, और जब नागराज भयसे चौंक गया था, और पिताने मेघस्वरको 'जय' कहकर पुकारा था, तभी मेरी क्रोधाग्नि भड़क उठी थी और दुष्टोंके लिए यमदूतको तरह मैंने नियन्त्रित कर लिया था। पिताने अपनी प्रच्छन्न उक्तियोंसे मुझे मना कर दिया था। किन आल स्वयंवराला घोसे व ! क्रोधाग्नि ) असह्य रूपसे प्रज्वलित हो रही है, वह शत्रुके रक्तसे सिंचित होकर ही कम होगी।
पता-अरे यह अवसर है, कन्यासे मुझे क्या क्या मैं मार्ग नहीं समझता हूं। जय अपनेको योद्धाओंको पंक्तिमें गिनता है मैं उसके साथ युबमें लडं मा" ||२३||
२४ युद्धके नगाड़े बज उठे। कलकल होने लगा। एक पलमें चतुरंग सेना उठ खड़ी हुई, रक्षित और शिक्षित तथा शत्रुओंका विदारण करनेवाले शूरोंसे आरूढ़ बहादुर हाथी, महावतोंके पेरोंके अंगठोंसे प्रेरित कर दिये गये। वे गरजते हए मेधोंकी तरह दो। अपने तीव्र खरोंसे धरतीमण्डलको खोदनेवाले और उत्तम कामिनियों के समान चंचल मनवाले अश्व हाक दिये गये। रथोंपर उड़ते हुए वजोंका आडम्बर ( फैलाव ) था, चमकते हुए विचित्र छत्रोंसे आकाश ढक गया। चक्रोंके चलनेसे विषधरोंके सिर चूर-चूर हो गये। सैनिक हायमें तलवार, शस, मुसल, लकुटि और हल लिये हुए थे। सुनमि और वितमि नामके जो आकाशगामी महाप्रभु थे और आठ चन्द्र नामके जो विद्याधर ये युवराजने उन्हें युद्ध के मैदानमें उतार दिया। वे गरुड़व्यूहकी रचना कर आकाश में स्थित हो गये। अपने विजयघोष नामक महागजपर आरूढ़ होकर, बालक होकर भी सैकड़ों महायुद्धोंका विजेता वह व्यूहके मध्यमें स्थित होकर ऐसा शोभित होता है, मानो सूर्य अपने परिवेशसे घिरा हुआ हो। यहां कन्याने जिनालय में प्रवेश किया, नित्यमनोहर नामका जो अत्यन्त विशाल था। अनुचर-समूहके द्वारा रक्षा को जाती हुई वह कायोत्सर्गसे निश्चल मन होकर स्थित हो गयी। वह ध्यान करती है कि नाना जीवराशिका संहार करनेवाले विवाह विस्तारसै क्या? यहाँ इतने थोड़े में चक्रवर्तीके पुत्र द्वारा अवषारित काम बता दिया।
पत्ता-पहाँ दामादने पुलकित होकर कहा, “अकम्पन ! तुम धनुष धारण. करो, शत्रुको जीतकर जबतक मैं वापस आता है, तबतक तुम तरुणोकी रक्षा करो" |२४||
२५
उसके साथ श्रेष्ठ वीर पुजमें उद्भट सुकेतु और सूरमित्र योद्धा भी चले। हाथमें तलवार लिये हुए, पाशुश्रीका अपहरण करनेवाला देवकीति, और श्रीधरके साथ जयवर्मा, ये पांचों ही चन्द्र-सूर्य और नागकुल से उत्पन्न थे। पांचों ही संग्राम का उत्सव करनेवाले थे। पांचों ही दाड़ों