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हिन्दी अनुवाद
२८. १६.८]
२०५ ही जुहीका पुष्प समूह खिल उठा और रमणीजनोंमें रतिलोभ बढ़ने लगा। शीघ्र ही भ्रमररूपी विटजनोंमें मद बढ़ गया और उन्होंने लताओंके कुसुमरसको चूमकर खींच लिया। कुन्दवृक्ष अपने पुष्परूपी दौतोंसे हंसने लगा और कोयलने मानो कामका नगाड़ा बजाना शुरू कर दिया। दमनक लताके कुडमलोंसे रचित और चन्दनकी कीचड़से लिप्त
पत्ता-शीघ्र ही केलिगह बना दिये गये और उनमें पुष्पोंके बिछौने डाल दिये गये। शीघ्र ही वेगयुक्त मिथुन रतिमें रत हो गये ||१४||
सघन मधुके छिड़कावों और फूलोंको सुरभि रजकी रंगोलोसे धरती रंग उठी । वसन्तरूपी प्रभु, नव रक्तकमलोंके कलिकारूपी द्वीपों, मयूररूपी नटके नृत्यभावों, धवल कुसुम मंजरियोंकी पुष्पमालाओंके गुनगुनाते हुए श्रमरोंको गीतावलियों, राजहंसकी कामिनियों द्वारा किये गये रमणोंके साथ उपवन भवनों में स्थित हो गया। कुरर, कीर और कारंज पक्षियोंके निनादोंके द्वारा जो मानो स्तोत्रसमूहके द्वारा वर्णित किया जा रहा हो। श्वेत अलकणोंसे चावलको शोभा धारण करनेवाले, कमलिनीके पत्तोंकी पंक्तियोंकी थालियोंके द्वारा, खिले. हुए. कमलोंके समान आँखोंवाली वनलक्ष्मीने मानो उसे शेषाशत समर्पित किया हो। नन्दीश्वर द्वीपमें फागुनके आनेपर, शीघ्र देवेन्द्र द्वारा नमित नन्दोश्वर द्वोपमें, जिसका शरीर उपवासके श्रमसे क्षीण हो गया है, स्तनयुगलके अन्तमें हार लटका हुआ है, ऐसी पुत्रीने हंसते हुए मुखकमलसे जिनपूजाके कमलके साथ राजाको देखा।
पत्ता-त्रैलोक्य पितामह जिनको प्रणाम कर, नवपरागसे अंचित और मधुकरकुलके मुखसे चुम्बित उस कमलको राजाने अपने सिरपर धारण कर लिया ॥१५||
पिताने प्रिय बचनोंसे पुत्रीका सस्कार किया और भोजन (पारणा ) करो यह कहकर उसे विसर्जित कर दिया। सुन्दरी गयी और अपने घर पहुंची। पिताके मनमें चिन्ता उत्पन्न हुई 1 उसने सब भटजनोंको दूर हटा दिया। राजाने मन्त्रीसे विचार प्रारम्भ किया, "ऋतुदिनमें ( मासिक धर्मके दिनों में ) कन्याके गलित और लाल आठों अंग मुझे इस प्रकार कष्ट देते हैं, मानो कुपुत्रके द्वारा किये गये दुश्चरित हों। इसलिए पीघ्र नये वरको खोजो। कुमारी कन्याको घरमें कितना रखा जाये, किसो कुलोन और गुणवान् व्यक्तिको दो जाये ।" सागर मन्त्री