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हिन्दी अनुवाद
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जिसमें कुमारी स्वयं अपने वरकी इच्छा करती है ऐसे पतिका स्वयंवर प्रारम्भ किया गया है। तुम्हारे बिना किंकर वत्सल उस नवीनसे क्या ? आप शीघ्र चलें, किसी दोष के कारण यहाँ अविनय न हो, मैं तुम्हें बुलानेके लिए भेजा गया है। यह सुनकर कुतूहल हुआ। भेरी बजा दी गयी । और भारी बलके साथ सेना इकट्ठी हुई। मेरुके समान धीर एवं विश्वरूपी कमलके लिए सूर्य के समान भरतेश्वर यह सुनकर चल पड़ा। तब शत्रुकी गजघटाका मर्दन करनेवाला अकीति नामका उसका पुत्र भी चल पड़ा । बलो रथवर वज्रायुष भी चल पड़ा। घनरव भी चला मानो कामदेव हो। इस प्रकार मनुष्य और विद्याधर राजा जाकर उस मण्डपमें आसोन हो गये। जबतक राजाओं द्वारा अकम्पनको प्रणाम किया गया, तबतक तरुणी ( सुलोचना ) को रथपर चढ़ा दिया गया। घायके साथ आभूषणोंसे शोभित होती हुई वह अपने हजारों भाइयोंसे रक्षित थी। महेन्द्र सारथिने वहाँको ओर अपने घोड़े चलाये जहां राजकुमार बैठे हुए थे। फेकी बता बताता है और कुमारी देती जाती है। एक राजा उसके मनको अच्छा नहीं लगता । पत्ता- वहाँ अर्कैकीर्ति प्रलय के सूर्य समान और बलि भुजबलिके समान था । वज्जायुध वज्र के समान दिखाई दिया। परन्तु उसे कोई भी राणा अच्छा नहीं लगता ॥ १८ ॥
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जहाँ-जहाँ वह सुन्दरी अपनेको दिखाती, वहाँ-वहाँ राजपुत्रों के शरीरोंको सन्तप्त कर देती । कोई निश्वास लेता, कोई लम्बी साँस छोड़ता, कोई अपने आपको बार-बार अलंकृत करता, कोई कंठाभरणको ठीक करता । कोई स्वयंको दर्पण में देखता । कोई अपने अभग्न नखोंको देखता कि जो अभी इसके स्तनों को नहीं लगे हैं, पूर्वभवमें मैंने अपने मनका निग्रह नहीं किया, में इसके कण्ठग्रहको किस प्रकार पा सकता है। कोई उसके अधरोंके अग्रभागकी इच्छा करता है और किसीके लिए कामरूपी महाग्रह लग जाता है। किसीके लिए विरह महाज्वर आ गया। किसीके हृदयमें कामदेवका तीर चुभ गया। कोई विह्वलांग होकर मूच्छित हो गया और किसीने अपनी
के लिए पानी दे दिया ।
पत्ता - हाथ मोड़ता है, सिरके बाल खोलता है। उमड़ रहा है शृंगार जिनमें, ऐसे कामविकारोसे वह इच्छा करता है, हँसता है, मधुर बोलता है और भग्न होता है ||१९||
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सुमेरु पर्वतकी तरह गम्भीर सारथिने युवतीका मुख देखकर और मन जानकर फिरसे रथ उस ओर चलाया जहाँ राजा जयकुमार बैठा हुआ था। वह गजगामिनी उसे देखती हुई पूछती
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