________________
२६. १४.६] हिन्दी अनुवाद
१६७ परम्पराको प्राप्त हआ है। जोवदया और संयमसे रहित तुम लोग पापके कारण यहाँ उत्पन्न हुए हो । दुर्नयोंसे अपनेको मत भटकाओ, वीतराग जिन परमात्माका नाम लो। ___पत्ता-अहिंसाधर्मकी भद्धा करो। निर्ग्रन्थ मोसमार्गको जानो तथा जिह्वोपस्थ भूखसे रहित और मोहसे मुक्त मुनिका सम्मान करो" ॥१२॥
उसने प्रभासे सूर्यको और गतिभंगिमासे हथिनीको जोतनेवाले स्वामीको माना और कहा. है अनिन्ध, तुम्हारी जय हो । शीघ्र ही उसने हमेशा दोषसे रहित जिनेन्द्र के सिद्धान्तको दृढ़ताके साथ स्वीकार कर लिया। अमोहके साथ वह मृत्युको प्राप्त हुबा । महान् दुःखोंसे भरे हुए तमसे उत्पन्न दुःखोंवाले उस नरकको छोड़कर श्रीधर अपने यधुर स्वर्ग-विमानमें चला गया। उस समय पापोंको नष्ट करनेवाला पातमति अपने सामान नहीं हएः महालाला विवरोंको छोड़कर चला । मणिमय कमलोंके स्थान श्रेष्ठ पुष्करा) द्वीपमें, जिसके अग्रभागमें हरिण स्थित है, ऐसा सुमेरु पर्वत है। उसकी पूर्वदिशामें सफल विदेहक्षेत्रमें जलसे भरी हुई नदियोंवाला मंगलावती देश है।
षता-उसमें धन-सम्पन्न रत्नसंचय नगर है। उसमें महीधर नामका राजा है जो ऐशा जान पड़ता है मानो कामदेवने पवित्र बांससे उत्पन्न प्रत्यंचा सहित धनुष ही प्रदर्शित किया हो ॥१३॥
सौभाग्यमें सुन्दर और नामसे सुन्दर उसकी गृहिणीका क्या वर्णन किया जाये ? अपने अशेष पापोंको भोगकर तथा जिनमतमें श्रद्धानको पाकर शतमति पुण्यके फलसे उसका पूर्णचन्द्रके समान मुखवाला पुत्र उत्पल हुआ। वह जयसेन सूर्यको किरणों के समान प्रतापवाला था। जब वह विवाहके लिए कन्याका हाथ पकड़ता है, तभी श्रीवरदेव भी वहां आ पहुंचा। उसने धूलसे भरी हुई ह्वा छोड़ी। उसने भीषण विघ्न शुरू किया। विवाहमें किसीको भी आनन्द