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हिन्दी अनुवाद
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जो हाथियों के सूडोंसे भरते हुए मदजल बिन्दुओंसे मलिन हैं, जिसके विशाल किनारोंपर मुगयुगल ठहरा दिये गये हैं, जिसके कमल सूर्यको किरणोंसे खिलते हैं, जहाँ मतवाले भ्रमरोंकी गतिका स्खलन हो रहा है, जहाँ मदवाले गजोंके द्वारा कमलोंको नष्ट कर दिया जाता है, जो सिंहोंको जिह्वावलियोंसे अलिखित है उसके तटपर जैसे ही शिविर ठहरता है, वैसे ही सागरसेनके साथ एक मुनि मोजनके पात्रकी परीक्षाको चिन्ता करते हुए तथा वनभिक्षाके लिए परिभ्रमण करते हुए दमवर नामक महामुनि उस राणाके तम्बुओंके निवासपर पहुंचे। उन्हें आते हुए देखकर श्रीमती और वनअंध वधूवरने दोनों हाथ जोड़कर दोनोंके लिए 'ठहरिए कहा । उपशम और विनयके अंकुशके कारण वे दोनों चारण मुनि ठहर गये ।।
पत्ता-देवोंके सिरोंकी कुसुमरबमें रत मुक्त मधुकर-पंक्तियोंसे काले उनके चरणयुगलोंको चन्द्रमाके समान उज्ज्वल प्राशुक जलसे प्रक्षालित किया ॥१२॥
भावपूर्वक चरणयुगलोंको वन्दना कर दोनों साधुओंको ऊंचे बासनपर बैठाया। वे भोजन करते हुए ऐसे दिखाई देते हैं-सुरस और नीरसमें समान दिखाई देते हैं, हाथ उठाते हुए भी वे दोन नहीं होते, हाथसे ग्रहण करते हुए भी धर्महीन नहीं हैं, अक्रूर होते हुए भी कूर (क्रूर = दुष्ट, भात) पर दृष्टि देते हैं, स्नेहहीन होते हुए भी दिये गये स्नेह { तेल ) को लेते हैं, ब्रह्मचारी होते हुए भी तिम्मण (कढ़ी, स्त्री) लेते हैं, रससे निवृत्त होते हुए भी रसको जानते हैं, स्वयं तरल होते हुए जमा हुआ दही ले लिया, जो विश्वमें महान हैं, उन्होंने शीतल मही पी लिया ! मनसे स्वच्छ उनके लिए स्वच्छ जल दिया गया। इस प्रकार उन्होंने सब प्रकारके दोषोंसे रहित भोजन किया। तब दोनों मुनियोंने अपने स्थिर लम्बे हाथ उठाकर उन्हें आशीर्वाद दिया । ये दिये गये आसनोंपर बैठ गये। उन्होंने पैरोंमें प्रणाम, उन्हें दबाना आदि क्रियाएँ कीं। फिर लम्बे समय तक जिनधर्म सुनकर, अपना सिर हिलाते हुए राजाने कहा
पत्ता-"संयम धारण करनेवाले मुनिवरोंका रूप कहीं मेरे द्वारा देखा हुमा है। नेत्रोंके लिए दोनों इष्ट हैं, केवल मुझे याद नहीं आ रहा है, हा ! मैं क्या करूं?" ||१३||
तन हंसते हुए मतियर बोले-"हम तुम्हारे मित्र दमवर और जलधिसेन हैं-पचास