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सन्धि
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कामभोग और सुखरससे वशीभूत उस श्रीमतीका क्या वर्णन किया जाये। मनपे वह जोजो सोचती है, वह सब एक क्षणमें उसे प्राप्त हो जाता है।
यक्ष कदम, प्रियका दृढ़ आलिंगन, मालतीमाला, केशरका लेप, ऊँचा मंच, सुन्दर शय्यातल, स्थूल उन्नत ऊष्मा सहित स्तनोंका भाग, उष्ण भोजन पीकी धारासे सराबोर, लाल कम्बल, और रन्ध्रोंसे आच्छादित घर-पूचं पुण्यके संयोगसे उसे सब कुछका संयोग प्राप्त हो गया। शीतकाल में उसने इस प्रकार भोग किया। चन्दन, चन्द्रकिरणे, स्नेहमयो प्रिया, जुहीकी माला, स्वच्छ हारावलो, दक्षिण मन्द शीतल पवन । वृक्षको क्रीड़ासे आन्दोलित कोमल पल्लव । लतामण्डप, कमलयुक्त सरोवर, पंखोंके आन्दोलनसे व्याप्त जलकण । खूब जमा हुआ दही। ठण्डा जल । उष्णकालको उसने इस प्रकार बिताया। खिले हुए दिशाकदम्ब समूहकी धूलसे रत, मस्त मयूरवृन्दका केका शब्द, जलधाराको विसर्जित करनेवाले मेघोंको ध्वनि, संगत सुभग, पासमें बैठी हुई स्त्री। णिम्गल मन्दिर, और पवित्र भूमिभाग, दौड़ता हुआ वेगशील प्रवाली जल । इष्ट गोष्ठियों और विशिष्टोंके द्वारा विज्ञापित दिव्य गन्धवंगान और प्राकृतकाव्य । बिजलियोंसे स्फुरित आकाश और दिशापथ, ये भी मेधोंके आगमनपर उसे ( श्रीमतीके लिए ) अच्छे लगे। जब उसका बहुत समय बीत गया तो एक दिन, उसने घरमें धूप दी। उसके धुएंने उन्हें कानोंके छेदमें आहत कर दिया । उस दम्पतिका एक क्षणमें जीव चला गया। क्या मनुष्य मृत्युका कारण चाहता है ? शिरीष पुष्प भी आयुका क्षय होनेएर शस्त्रका काम करता है ?
घता-वधूवर दोनों मरकर जम्बूद्वीपके महा सुमेरुको उत्तरदिशामें रमणके लिए सुन्दर उतर कुरुभूमिमें अनिन्द्य आर्जवनारीके उदरमें, अवतरित हुए ॥१॥
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