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२५. १५.१४] हिम्बी अनुवाद
१४१ युगलों में से अन्तिम । क्या पागला हो, अपने दोनों पुत्रोंको नहीं जानते। हे राजन् ! यतिवर सब आनते हैं।" इसपर परिगलित गवं राजा कहता है--"गुणका कारण बुढ़ापा नहीं होता, जीर्ण नीबू मोठा नहीं हो जाता । लेकिन मधु हर क्षण मधुर दिखाई देता है । पुत्रोंने तप और परिणतअथ मैंने मोहजालका आचरण क्यों किया ? क्या आयुसे कम हो बलवान होता है ? कामदेवकी लीलाओंका अन्त करनेवाले हे दमवर स्वामिश्रेष्ठ, मेरे गत जन्म थोड़ेमें बताइए? और भी हे यतिश्रेष्ठ, इस चक्रवर्तीकी भी शुम्हारी आनन्द मोसमझिकर अनमित्र और अकम्गत अनुचरोंका चिरजन्म बताइए और मेरे भारी स्नेहका क्या कारण है ?' इसपर मुनि कहते हैं कि ऋषिके द्वारा कहे जानेपर भी ज्ञानसे रहित जयवर्मा नामके हे सुभट ! तुम निदान बांधकर विद्याधर राजा हुए, सेनासे सहित महाबल नामके ।
पत्ता-प्राचीन समयमें विजयाधं पर्वतपर अलका नगरीमें स्वयंबुद्धके द्वारा सम्बोधित विशुद्ध मतिवाला और शीलगुणोंसे प्रसाधित वह विद्याधर राजा मर गया ॥१४॥
तुम ललितांग नामसे ईशान स्वर्गमें देव हुए, कामको अभिलाषा करनेवाले । वहाँसे मरकर तुम यहां आये, तुम वनजंघ मेरे पिता । भवनभावसे रहित वह मुनि फिर कहते हैं-तुम श्रीमतीका जन्मान्तर ( चार पूर्वजन्म ) मुनो। गृहपतिको पुत्रो धनश्री श्रुतधारी मुनिवरको उपसर्ग कर बनियाकी दरिद्र वान्या हुई । मुनि पिहिताधवने उसे उपशान्त किया। वह कुछ श्रावक व्रत ग्रहण कर स्वर्ग में तुम्हारी देवी हुई स्वयंप्रभा नामको । वहाँसे आकर यहाँ राजाको कन्या हुई श्रीमती सतो सुन्दरी मेरी मां। हे तात ! अब भृत्योंके पूर्व जन्मों को सुनिए। जम्बूद्वीपके सुमेर पर्वतके पूर्वविदेहमें वत्सावती देश है, जिसपर सदैव बादल छाये रहते हैं, उसमें क्रोधसे प्रज्वलित गुड नामका राजा था। वह बेचारा नरक गया और पंकप्रभा भूमिमें दस सागर पर्यन्त दुःख भोगकर जहाँ धनका निवास है, ऐसे अपने नगरके निकट, दिग्गजरूपी कुसुमोंको मन्ध लेनेवाला बाघ हुआ।
पत्ता- वहां लवलोलतामोंके घर उस पर्वतपर प्रोलिवर्धन नामका राजा, युद्धका आदर करनेवाले अपने भाईपर आक्रमण करने के लिए जाता हुआ, ठहर गया ॥१५॥