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२१. १९.७]
हिन्यो अमुवाद उत्पन्न हुआ है। कवियोंके द्वारा कहा गया है कि कनकाभ नामका देव च्युत होकर श्रुतिकीर्ति और अनन्तमतिसे उत्पन्न होकर यह सुभट शुद्धि प्रदान करनेवाला विमलबुद्धि, आनन्द नामका पुरोहित है।
पत्ता-जनोंका रंजन करनेवाला प्रभंजन नामका अमर कषित विमानसे आकर रतिमें आसक्त दत्तक सेठकी पत्नी धनदत्ताका पुत्र हुआ ||१७|| ..
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श्रेष्ठोकुलरूपी कमलों के लिए सूर्य, धनमित्र तुम्हारा अनुचर अथवा परममित्र हुआ । स्नेहसे बंधे हुए ये छहों तुम लोग स्वगसे आये हए हो। इस प्रकार राजा, युद्ध में भयंकर चारों अनुचर और सौभाग्यको चरम सीमा रानी श्रीमती अपनी भवावलो सुनकर विस्मयमें पड़ गये। छहों जिनरूपी सूर्यके गुणोंको सुनकर स्थित हो गये। राजा फिरसे कहता है-ये भयभीत तथा विमल सिंह-कोल-बन्दर और नकुल ये चारों मनुष्योंसे नहीं हटते, यहाँ बैठे हुए हैं, वनमें विचरण नहीं करते, न कुछ भोजन करते हैं, और न पानी पीते हैं, अपना मुंह नीचे किये हुए तुम्हारा भाषण सुनते हैं। हे मुनिश्रेष्ठ, इसका क्या कारण है ? तब मुनिवर कहते हैं- 'हे राजन् ! सुनो, यहाँ सुन्दर हस्तिनापुर नगर में सागरदत्त वणिक अपने विचित्र महलमें निवास करता था। उसकी स्त्री धनवती और पुत्र उग्नसेन था। स्त्रियोंके चरणोंकी घूल वह अत्यन्त कामी था। राजाके कोष्ठागारका अतिक्रमण कर चावल आदि वस्तुएँ बलपूर्वक हरण कर, अपनी प्रेयसी स्त्रीके पास ले जाते हुए राजाने उसे रस्सियोंसे बंधवा दिया। वह मरकर क्रोधके कारण यहाँ बाध हुआ । मुझे श्लाघनीय मानकर अब यह ऊपर स्थित है।
पत्ता-वह सुअर पूर्वजन्ममें विजयनगरमें महानन्द राजासे उत्पन्न वसन्तसेनाका पुत्र था। अत्यन्त मानरत और बुद्धिसे कृश । लेकिन जनपदमें मान्य ||१८||
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हरिवाहनके नामसे वह बड़ा हुआ। दर्पसे अन्धे और अपने घरमें खेलते हुए उससे राजाने कहा कि मान करनेसे देवता बिमुख हो जाते हैं। यह सुनकर वह चंचल बालक दोड़ा और उसका सिर शिलामय भवनके खम्भेसे जा लगा। मरकर वह बेचारा यहाँ सुबर हुआ है । अत्यन्त साधु वह साधु पुनः कथन करते हैं कि उड़ती हुई पचरंगी घ्दजमालाओंवाले धान्यपुर नगरमें यह बन्दर, पूर्वजन्ममें, बणिग्य र कुबेरसे उत्पन्न प्रणयिनी सुदत्ताका नागदत्त नामका पुत्र था।
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