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२४. १४.१३]
हिन्दी अनुवाद समान वेगवाले प्रमत गज, पंचरंगी पवित्र क्वज, यान, जम्पान, श्वेत छत्र, चमर, देश, ग्राम, पुर, सात भूमियोंवाले घर, हंस, रुई और सूर्यके समान उज्ज्वल शय्यातल, दीपक, मंच, दास-दासीका समूह, सुन्दर वीर समूह, इच्छित मण्डल, कोचोदाम, वर कंकण और कुण्डल आदि अनेक श्रेष्ठ, वस्तुएँ तथा पुत्रीको सन्तोष उत्पन्न करनेवाला प्रचुर धन दिया। जिस प्रकार लोलागज हथिनीको ले जाता है उसी प्रकार बह उस राजपुत्रीको हाथमें लेकर चला गया। भण्डपमें वेदिकापट्टी पर बैठे हुए राजा वज्रबाहुका अभिनन्दन किया गया। पवित्र दुर्वांकुरोंसे मिले हुए अक्षत और सरसों, बन्धुलोक ने उसके सिरपर फेंके और कहा कि जबतक गंगा नदी है, जबतक सुमेरु पर्वत है, तबतक तुम लोग भी सम्पत्ति का उपभोग करो। तुम्हारे प्रभासे भास्वर महान पुत्र हों और तुम्हारे दिन अच्छिन्न स्नेहके साथ बीते । लक्ष्मीसे विशाल यह वर और वह वधू जहाँ विद्यमान थे वहाँ
पत्ता-उस दिनसे लेकर परम्पराके अनुसार, सुखसे निवास करनेवाले बत्तीस हजार राजाओंने उनका पूजन और अभिषेक किया ||१३||
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दिन बीतते रहे, और बालमृणालके समान सरल तथा कोमल करवाले वधूवर कोड़ा करते रहे । सकाम वर वधूसे कुछ भी मनवाता है, लगाती हुई वधू जसोको मान लेता है। वर अपने शरीरके अनुरूप उसका आलिंगन करता है। आलिंगनसे मुक्त होनेपर वधू फिर उसीको अपने मनमें चाहती है । वर बाल पकड़कर वधूको झुकाता है, वधू अपना मुंह नीचा करको मुंहको छिपाती है। वर अधरोंके अग्रभाग, मृदु-मृदु कुछ करता है, नववधू हुँन्हें कहकर कुछ बोलती है। वर अपने हाथसे स्तनशिखरोंको छूता है, वधू लज्जाके कारण उन्हें अपने वनसे ढक लेती है। फैले हुए वन ( साड़ी ) को प्रिय धीरे-धीरे इकट्ठा करता है, और अपना हाथ दोनों जांघों में डालता है। वर उस ( वल) को निकालकर पलंगपर डाल देता है, वधू मुखपर शंकासे अपना हाथ रख लेती है 1 वर कटितलमें उस (के गुप्तांग) को देखता है, बध हाथोंसे उसकी दृष्टि ढक लेती है। समर्थप्रेमसे प्रिय भिड़ जाता है, वधू रोमांचसे विशिष्ट हो जाती है। रतिगृहमें प्रिय कहता है कि यहाँ हम दोनों हैं, बताओ...और लज्जा करने से क्या ।
___घत्ता-विशाल हिमगिरिक शिखरपर कोड़ा कर, वे दोनों तुम्हारे श्रीगृह भरतेश्वर और सूर्यचन्द्र के निवास ऊवं आवासको ओर चले ॥१४॥
प्रेसठ महापुरुषांके गुण और अलंकारोंवाले इस महापुराणमें महाकषि पुष्पदन्त द्वारा विरचित और महामन्य मरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका वनजंघ श्रीमती
समागम नामका चौबीसों परिपछेद समाप्त हुभा ॥२॥