________________
सन्धि
२१
संसाररूपी वृक्षके फलको सब कुछ माननेवाले राजा अरविन्दके रक्तकुण्ड में डूबने और नरकमें जानेपर स्वयंबुद्धिने महाबलके लिए अपना सहारा दिया।
फिर उसने कानोंको मधुर लगनेवाली यह बात कही कि सैकड़ों जन्मोंके मलभारको दूर करनेवाले कुलश्रेष्ठ तुम्हारे पिताके पितामह सहस्रबल नामसे प्रसिद्ध थे। वह परम गुणी मुनि बनकर तथा केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्षको प्राप्त हुए । तुम्हारे पिताके पिता नृपश्रेष्ठ शतबल श्रावकवत-समूह धारण कर माहेन्द्र स्वर्ग में देव हुए। उनकी आयु सात सागर प्रमाण है। उस समय हम लोग सुमेरु पर्वतपर गये। वहां उन्होंने मेरे साथ तुमसे कहा-भयभीत तुम्हारा जितेन्द्रिय पिता, मनि होकर वनवासके लिए चला गया। हे देव, इस प्रकार न्याय और विनयके घर नवयौवनसे युक्त, अपने-अपने पुत्रोंको लक्ष्मी सौंपकर, तुम्हारे पितामह पिता प्रभृति लोग मोक्षको सिद्ध करनेवाले सुने जाते हैं। ( लेकिन तुम्हारे पिता ) रोद-आर्द्रध्यानसे आरूढ़ बाभाके कारण नरक और तिर्यचगतिको प्राप्त हुए।
पत्ता-कर्मोको आहत करनेवाले जिनवरके धर्मसे रंक भी ऊपर-ऊपर जाता है। हे नप, जब कि गवं करनेवाले पापसे राजा नरफमें ( अधोमुख ) गिरता है ||१||
यह सुनकर वह भग्यजन प्रबुद्ध हो गया, अतिबलका पुत्र उपशान्त मन हो गया। तब शंकाओं और आकांक्षाओंसे रहित गुरुको उसने अच्छे शब्दोंमें पूजा की। एक दूसरे दिन, वह नक्षत्राण जिसकी मेखला है, जिसमें खलखल करता हुआ निझरोंका जल बह रहा है, जो