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२१. १५. १.]
हिन्दी अनुवाद महादेवी स्वयंप्रभा और कनकप्रभा थीं। पूर्वभवमें शुद्धव्रतोंका पालन करनेवाली कनकलता, सुभाषिणी और विद्युल्लता । वह इनके साथ सुखसे वहाँ रहता है, और एक पक्षमें सांस लेता है।
पत्ता-शुभस्वादवाला श्रेष्ठ एक सागरको श्रेष्ठ आयुवाला। एक हजार वर्ष बीतनेपर एक बार खाता है और जीवित रहता है ||१४||
वह सात हाथ ऊंचा। शुभ करनेवाला वह किसके द्वारा नहीं चाहा गया? उसकी एक एल्य आयुवाली पत्नी है जो बेलके समान पोन स्तनोंवाली है, जो बहुत समयके बाद उसे मिली, एक और स्वयंप्रभा अवतरित हुई । कामदेवने उसके ओठोंमें रस, दृष्टिकी श्वेततामें अपना यश, उसको नाभिदेशमें अपनी गम्भोरता, उसकी दोनों भौंहों में कुटिलता, स्तनयुगलोंमें कठिनता, इस प्रकार अपनेको स्थापित कर लिया। जिसमें विद्याधर कोड़ा करते हैं, ऐसी मन्दिरकी गुफाओं, कुण्डलगिरिके विवरमें, उस ललितांग देवके रतिकोड़ा और शारीरिकभोगमें दिन बीत गये।
घत्ता-गौतम गणघर कहते हैं कि हे श्रेणिक महानृप, सुनो पुराने ऋषियों द्वारा कहे गये पुराणको बहुत समय बीत जाने पर, पुष्पदन्त तीर्थकरको गति याद आती है ।।१५।।
इस प्रकार प्रेसठ महापुरुषोंके गुण भकारोंसे युक्त महापुराममे महाकवि पुष्पदन्त द्वारा थिरचित और महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका महासंन्यास मरण और छकिवांग-उत्पत्ति मामका
इक्कीसवाँ परिच्छेद समास बा ॥२॥
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