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सन्धि २३
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यह सुनकर चित्रको हाथमें लेकर वह धाय जिनमन्दिर के लिए गयी । मानो अतिकुटिल, तेजवालों और सुन्दर चन्द्रलेखा मेघके लिए निकली हो ।
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वह राजपुत्र प्रियतमकी विरहवेदना सहन करती है, और वहाँ पण्डिता धायने जिनमन्दिर के दर्शन किये। जो पवनसे उड़ती हुई ध्वजमालासे चपल तथा हिम और कुन्द पुष्पके समान सुधासे धवल था। जिसमें गायक-समूह द्वारा जिन भगवान्के धवलगीत गाये जा रहे हैं, जो सिद्धान्तों के पठन के कलकल शब्दसे मुखर है, जिसके शिखर आकाश प्रांगणको छूते हैं, जो अत्यन्त विशाल चन्द्रमाकी किरणराशिको धारण करता है, जो यक्षों और यक्षिणियोंकी प्रतिमाओंका घर है, जहाँ तलशिला विद्रुमोंसे रचित है। जो मरकतमणियोंके खम्भोंपर आधारित है, मणिमय मत्तराजों से अलंकृत है। जिसका भित्तितल आकाशके स्फटिक मणियोंसे निर्मित है और भूमितल हरे और नील मणियोंसे रचित है। जहाँ अंगारवरमें धूप लेई जा रही है, जिसमें गुनगुनाते हुए भ्रमका स्वर हो रहा है, जहां चढ़ाये गये पुष्पित पुष्पों का समूह है, जहाँ सैकड़ों मोतियों की मालाएं लटक रही हैं, ऐसे मुनिनाथके उस घर में प्रवेश कर जन्म-जराको जीतनेवाले जिनको नमस्कार कर, उस धायने चित्रपटको फैलाकर दिखाया । नागरनरोंको वह बहुत विचार किया 1
पत्ता - इस प्रकार दशों दिशाओं में यह बात फैल गयी। जो चित्रपटके वृत्तान्तको जानता है वह श्रीमती के स्तनयुगलको मानेगा ( आनन्द लेगा ) ॥ १ ॥
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विविध आभरणोंकी किरणोंके विस्फुरणसे नागों और देवेन्द्रोंको तिरस्कृत करनेवाले नश्वरेश्वर हाथियों और ऊंचे घोड़ोंपर बैठे हुए चले। जिसने श्वेतता में सफेद शरद्को पराजित