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२३.३.६१
हिन्दी अनुवाद
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कर दिया है, जिसमें विरक्तोंका निवास है, जिसने नरकका निवारण किया है, जो पापोंका हरण करनेवाला है, और जो सुभव्यों के लिए वरदान देनेवाला है, ऐसे उस जिनमन्दिरमें राजा लोग पहुंचे। उन्होंने वह चित्रपट देखा। उनके मनमें कामदेवरूपी नट नाच उठा । उसे देखकर अपना कल्याण चाहनेवाला बताओ, कौन सा राजा वहां ऐसा था कि जो रोमांचित न हुआ हो। किसी ने कहा - " यह कन्या रंगमें उजली और लताकी तरह कोमल है। सुन्दरी यह बाला, इसका नाम offer और भ्रमर के समान काले बालोंवाली में महिला पोली विधाता न जाने इसे कहां ले गया ।" किसीने कहा- "मैंने जान लिया है कि देवेन्द्रोंके द्वारा मान्य यह मृगनयनी पीनस्तनोंवाली नीलांजना मेरी कान्ता थी ।" किसीने कहा - " दिनको शोभा, यह
पर्वत, यह वह तरुणी। यहां मैंने देव होते हुए और गाते हुए इस हरिणीको मोहित कर लिया था" कोई कहता है- "आशा के बिना एक क्षण भारी हो रहा है, दिन कैसे बिताऊँ" कोई कहता है- "हा ! क्या करूँ ? निश्चय ही मरता है यदि इससे रमण नहीं करता । " कोई लम्बी साँस लेता है, तापसे सूखता है और अपना उरतल पीटता है। अपनेको धरतीतलपर गिरा लेता है । है सखो ! उसे ले आओ, बार-बार कहता है। कोई मूछों के वश होकर गिर पड़ा, और रतिसे प्रबंचित होकर उसने प्राण छोड़ दिये । दुःखित मन परिजन उसे उठाकर अपने घर ले गये । उस धायको जीतने के लिए उत्तरों और प्रत्युत्तरोंसे कोई वर कहता है कि "जन्मान्तरका वर मैं हूँ, उसका हाथ पकड़नेके लिए यहाँ अवतरित हुआ है ।"
धत्ता - तब उस पण्डिताने हँसकर कहा- जो मुझे गुह्य बातें बतायेगा, वह सुतारूपी लताके रतिरूपो फलका रस वास्तव में चलेगा ? ||२||
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अथवा, श्रेष्ठ रमणी के रूपसे रजितमन, जो मनुष्य झूठ बोलेंगा, कामदेवके तीरोंसे भिन्न उसे वह स्वीकार नहीं करेगी और वह नरकवासमें प्रवेश करेगा। तब अत्यन्त विरहसे भरे हुए इस कालकुमारीका सघन स्तन योवन आनेपर छहखण्ड धरतीको जीतकर देवों, विद्याधरों और