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२२. १०.२]
हिन्दी अनुवाद जाना 1 चिता बनाकर आग ले आया। पीत ही वासुदेवका संस्कार किया और पुत्रको अपने राज्यमें स्थापित कर दिया । तथा व्रत और संयमका भार उठाने में धुरन्धर युगन्धर मुनिके पास जाफर दीक्षा ले ली। पांच इन्द्रियरूपो गजोंको पीड़ित किया और सिहविक्रीडित तप किया। फिर सर्वतोभद्र तप किया और मिथ्यात्वकी जड़सा समाप्त कर दी। अनशनके विधानमें जो कुछ कहा गया है, चार प्रकारको आराधनाको मैंने सम्पन्न किया। मैं अर्हत को बार-बार याद कर मर गया और केवल अच्युत स्वर्गमें उत्पन्न हुआ।
पत्ता-तब रत्नविमानमें आरोहित (बैठाकर ) मुझे अच्युत स्वर्गमें ले जाया गया। अपने उस गुरु ललितांग देवकी भारी भक्तिसे पूजा की ८॥
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ललितांग देव व्युत हुआ। जम्बूद्वीपके मेरुपर्वतको पूर्वदिशाके विदेह क्षेत्रमें सुखवती मनुष्यभूमि मंगलावतो है । उसके विजया पर्वतको उत्तरश्रेणीमें, वहां विद्याधर विद्यावलो सिद्ध करते हैं, गन्धर्व नगरी है। उसमें इन्द्रके समान विमल यशवाला वासव नामका राजा है। प्रकट प्रतापपाला वहाँ निवास करता है जिसको दृष्टिसे कलियम डरता है। उसकी कलहंसगामिनी प्रभावती नामको देवीके उदरसे, ललितांग महीधर नामसे गम्भोरष्यनि पुत्र हुआ। पिताने पुत्रको राज्यमें स्थापित कर दिव्य मुनि अरिजयकी सेवा की और दिगम्बरत्वकी दीक्षा ग्रहण कर ली। मुक्तावली नामक तपके तापसे उसने अपनेको तपाया और दृढ़ कर्ममलको नष्ट किया। शान्त दांत-वासवको रोकनेवाले यासव स्वयं मोक्ष चले गये। प्रकाशपूर्ण चन्द्रमासे युक्त रात्रि में प्रणाम करती हुई उस रानी प्रभावतीके लिए विश्वमें शान्ति स्थापित करनेवाली आर्यिका पावतो कान्ताने तप प्रदान किया । शिष्याने पुण्यका समान किया और अपनी विषधकषायकी शक्तिको जीत लिया । की गयी है देह शोषण की उपवास विधि जिसमें, ऐसे भाग्यजनक रत्नावली उपवास उसने किया।
पत्ता-वह भी वहां अनशन कर मृत्युको प्राप्त हुई, मायुका क्षय होनेपर क्या जीवित रहा जा सकता है ? वह सोलहवें स्वर्गमें प्रतीन्द्र हुई। बताओ फिर धर्म क्यों नहीं किया जाता ||९||
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पुष्कर द्वीपकी पश्चिम दिशामें मन्दरावलके पूर्व, पूर्वविदेहकी भूमिपर वत्सकावती देश है।