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२४.९.१४]
हिन्दी अनुवाद
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यह सुनकर अपना नाखून तोड़ता हुआ राजा कुछ मुसकाता हुआ उठा। वह वहाँ गया जहाँ वह बालक था। वह बोला-"तुम काले क्यों हो गये हो। आओ, जबतक शाम नहीं होती, तबतक आज हो तुम्हारा प्रियमिलाप करा दिया जायेगा। मेरी बहुको तुमने कहाँ देखा।" तब किसी एकने कहा-"कुमार लीलापूर्वक कहीं घूमने के लिए गया हुआ था। उसने जिनालयमें एक बिट लिया कक्षा में इस मा पूर्वजन्म देख लिया और अपनी पूर्वजन्मकी कान्ताको जान लिया। जो कामको कामावस्थामें डाल देती है, ऐसी उसके रूपसे कौन-कौन नहीं नचाया जाता। जो पट में लिखा है, हृदयमें लिखा है और जो भाग्यमें लिखा है, उसे कोन मिटा सकता है। भाग्यका लिखा हुआ हे राजन्, अवश्य होगा। इस प्रकार जब मतिबन्ध मन्त्री ने कहा तो राजा पुत्र और परनी के साथ सेना और धवल छोंके साथ चला। वनबाहु एकदम दौड़ा और पुण्डरीकिणी नगरी आया। नगरमें मार्ग शोभा करवाकर और लोलापूर्वक मत्तगज पर चढ़कर
पत्ता-पथपर आते हुए प्रभुका आधे पथपर बच्चबाहुने जयकार किया। जिस प्रकार उसने, उसी प्रकार उसको देवी और पुत्रने मी नमस्कार किया ॥८॥
साले और बहन दोनोंको देखकर, अपने नेत्रोंका फल पाकर राजाने अपने भानजेको देखा और आंखोंके पुटसे उसका रूपरस रिया। पुर नारीजन कहीं भी नहीं समा सके। वे एक दूसरेको चूर-चूर करती ( पकापेल करती हुई ) दौड़ी। "हे सखी, यह जो राजा वजवाहु है वह राजाका बहनोई है। यह यशोधर नामके जिनेन्द्रको कन्या, यह वसुन्धरा राजाकी बहन है। अनुपम रूपवाले उत्पलखेरके राजाको यह वी गयी है। जो स्वर्गलोकसे अवतरित हुआ है वह श्रीमतीका जन्मान्तरका वर है। यह वह नरश्रेश्ठ वनजष है। हे सखी ! इसके सम्मुख मैंने यह अपना हाथ फेलाया, लेकिन यह भी नहीं पा सकता, चित्र ही पा सकता है। उसे पाते हुए भी शरीर सन्तप्त हो उठता है। शायद यह कामदेवका पुरुष हो, नहीं-नहीं, यह तो मुनियोंके मनका मपन करनेवाला कामदेव है।" कोई एक कहती है- "हे प्रिय ! मुझे ऊपर उठाओ, परकोटा लांघकर मैं परकी श्री देख लू।" प्रिय कुमारका रूप देखती हुई उसका शरीर प्रेमजलसे आई हो गया।
पत्ता-रतिसे प्रेरित, उज्वेलित और स्खलित होती हुई रुक जाती है। कोई अपनी निर्मल करधनीमें धोतीको कसकर बांधती है ।।९।।