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२४. ११. १४]
हिन्दी अनुवाद
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कोई कहती है कि "आंगनके पेड़, प्रतोली ( नगरका अग्रद्वार) और परकोटेने प्रियको छिपा दिया है !" उसने हाथ उठाया। न तो हाथसे और न नेत्रोंसे, (कुछ दिखाई देता है ), मैं कामदेवके समान अंगोंको किस प्रकार देख ? दुर्वचनोंसे प्रताड़ित कोई कहती है-"मैं आज या कलमें पति और स्वजनोंको छोड़ देती हैं और इसके घरमें दासी होना चाहती हूँ। मैं उसका मुंह देखकर जीवित रहूंगी।" कोई कहती है कि यह राजकन्या कृतार्थ हुई, न जाने पहले इसने कौन-सा व्रत किया था जिससे यह वर इसका हो गया ? जरूर इसने कोई महातप किया। उस अवसरपर राजाके भवन में उन्होंने प्रवेश किया और अतिथि पौठोंपर बैठ गये। जहां उन्हें स्नान-विलेपन-वस्त्र-पुष्पदाम और मणिभूषण दिये गये।
घत्ता-फिर विविध रस सुरभित जीरक, पांचों इन्द्रियोंको प्रिय लगनेवाला भोजन उन्होंने किया, मानो किसी धूत के रतिसुखका रमण किया हो ॥१०॥
राजा कहता है-"मैं कुछ भी नहीं सोच पा रहा है, जो धन मांगो में देता हूँ। तुम घर आये तुम्हारे लिए क्या करूँ, तुम जो धन मांगते हो वह मैं दूंगा। हे वज्रवाह, कहो कहो, क्या दिया जाय।" तब धनुषसे शंका उत्पन्न करनेवाला वज्रबाहु कहता है-'धनुष-गणके साथ नित्य ही वक रहता है। घन मद्यकी तरह मनुष्यको मतवाला कर देता है; धन मारक होता है और भाइयोंमें विष संचार करता है । धनको मैं नेत्रों और बुद्धिको मैला बनानेवाला मानता है। यही कारण है कि मैं घनमें कुछ भी मलाई नहीं देखता । षनसे क्या? वह सन्निपात ज्वरके समान है; इसीलिए धनमें अनिबद्धता ( अलगाव ) कही जाती है । धन कानीनों ( कन्यापुत्रों और दोनों के लिए दुर्लभ होता है, उत्तम पुरुषोंके लिए मान अत्यन्त दुर्लभ होता है, आपके प्रसादसे मेरे पास सब कुछ है, सुधिके अनुरागसे केवल एक चीज मांगता हूँ, अपने कुलका सौहार्द दिखायें और श्रीमती ववजयके हाथमें दे दें।" राजा वज़दन्तने इसका समर्थन किया, जैसे खिचड़ीके ऊपर घी डाल दिया गया हो, दूसरे जन्मसे यह देवयुगल आया है और इसने हमारे-तुम्हारे घरमें जन्म लिया है, वह जो विरहको ज्वालासे सन्तप्त है, देवसे वियुक्त इसका संयोग करा देना चाहिए।
पत्ता-चक्रवर्ती वचबाहको कन्याके द्वारा लिखित चित्रपट गुणभूषित विदुषी धाय लायो और उसकी व्याख्या की ॥१शा
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