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२३. २१. २८]
हिन्दी अनुवाद घत्ता-है पुत्री, मेरे द्वारा कहे गये इन बहुत-से अभिज्ञानोंको तुम याद कर रही हो? तुम दम्पतिने जिन रतिगृह और सुखरके क्रीड़ा-स्थानोंको भोगा था ॥२०॥
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वहाँ जब तुम्हारे पूर्व आयुके नियुतका माधा, अर्थात् पचास हजार वर्ष आयु शेष बचो, और जब दोनों वहाँ थे, तब कालने किसी प्रकार मुझे हटा दिया। हे पुत्री, स्वर्गसे व्युत होकर मैं सुरेन्द्र संस्तुत कुलमें पुण्योंसे प्रत्यक्ष रानी वसुन्धराके उदरसे रानीसे बबप्रेम राजा यशोषरका सुन्दर पुत्र हुआ यहीं वषदन्त नामका। जो कुवादियों के द्वारा गुम कर दिया गया था परन्तु सुमन्त्रीने उसे प्रबोधित कर लिया था। जिनेन्द्रका अभिषेक करनेवाला, दान देनेवाला सुधमकी भावनासे विद्याधर राजा महाबल मरकर दूसरे स्वर्गके श्रीप्रभ विमान में अपने स्वरूपसे कामको जीतने. वाला बाईसौ ललितांग देव हुआ। वही अन्तिम देव मेरा गुरु है। और जो प्रियव्रता अनामिका पी वह आयु बीतनेपर क्षयको प्राप्त हुई। वहीं तुम उस ललितांग देवको अन्तिम प्रियतमा हुई। लक्षणवती सुप्रभा नामकी, मानो सूर्यको प्रभा ही हो। परन्तु कृतान्तके प्रतापसे आहत होकर तुम्हारा प्रिय वहाँ भी मृत्युको प्राप्त हुआ। और यह विचित्र घरोंवाले श्रेष्ठ उत्पलखेड नगरमें लम्बे
और स्थूल बाहुओंवाले वचबाहु राजाकी कुलांगनासे है मृगाक्षिणी, स्वर्णवर्ण शरीरवाला पुत्र हुआ है वनजंघ नामका, जो सूर्यके समान दुलंच्य है। वे सुघो मेरे पूर्व जन्मके शुभंकर पिता पुत्र हैं। हे सुकुन्तले, वे समीप ही भूमिमण्डलमें रहते हैं । और देवालयसे आयी हुई, तथा लक्ष्मीवतीसे उपग्न सदा प्रभाकरी तुम मेरी कुशोदरी कन्या हो। अच्छा तू अपना वर देखेगी, धाय प्रायेगी। प्रिपके आगमनको बतायेगी। तीन दिन में प्रिय प्रकट होगा। तब श्रीमती बोली, 'तुमने मुझे (सब कुछ ) बता दिया। में परभवको याद करती हूँ, यह पुराना भी, हे तात नया-नया लगता है।'