________________
AN
२३. ६.७]
हिन्दी अनुवाद जीवित रहकर, पुण्यका क्षय होनेपर, हे सुन्दरी, वहां भी. मृत्युको प्राप्त हुए। पुष्कराध द्वीपमें पूर्वमेहके शिखरके पूर्व विदेहमें कि जहां सब रसोंका अन्त है, धनधान्य और ऋद्धिसे अतिशय महान मंगलावतो देश है । जहाँ दहो और दूध जलके समान सुलभ है; जहाँ बहुत से गुण हैं, दोष एक भी नहीं है।
पत्ता-जहाँ तोता सधन खेतोंको रखानेवाली कृषक बालासे कथा कहता है। लाल-लाल चोंचवाला बक्रमुख कुछ कहता हुआ मनको सन्तोष देता है ।।४।।
जिसमें विशाल मतवाले बैलोंके गरजनेसे विपुल गोकुल बहरे हो गये हैं, और जहां असामान्य और विषम लड़ते हुए भैंसोंके कारण ग्वालों द्वारा कोलाहल किया जा रहा है, जहाँ सुअरोंकी दाड़ोंसे स्थलकमल (गुलाब) आहत हैं, कमलोंके दलोंसे विमल जल आच्छादित हैं, जलयन्त्रोसे कदलोके तरुण वृक्ष सींचे जाते हैं, जहाँपर तरुण तरुओंकी कसम-रेणपर षडचरण ( भ्रमर) है, जहां द्विजारा और पी.) मानादि चरणोंसे सहित हैं, जहाँ सरोवरमें द्विजप्रवरों (पक्षिश्रेष्ठ, ब्राह्मणश्रेष्ठ ) का कलरव हो रहा है, जो सरोवरों, सीमाओं और उद्यानों से शुभ है और जो शुभतर चूनेसे सफेद है, जो गृहशिखरोंसे मेघसमूहका आलिंगन करता है, ऐसे उस राजगृहमें रत्नसंचयपुर नगर है, जिसमें राज्यन्यायसे प्रजा निश्चिन्त है, जिसमें सैकड़ों शत्रु राजाओंको चरणोंमें झुका लिया गया है, जिसकी जल-परिखाएं कमलोसे आच्छादित हैं, जो पापोंसे रहित और लक्ष्मीका घर है, ऐसे उस नगरका राजा श्रीधर था जो राजाको वृत्ति की इच्छा रखता था। सुधम में रत, कामको सती कान्ता रतिके समान, या मानो देवेन्द्रकी हंसगामिनी इन्द्राणी हो ।
पत्ता-वह देवी नामसे जैसे मनोहरा थी, वैसे हो सत्य और पवित्रतामें भी मनोहर थी। हत क्षयकालरूपो देत्य के कारण हम दोनों भी स्वर्गसे च्युत हुए ॥५॥
पुण्य करनेवाले हम दोनों उनके गर्भसे हलपर ( बलभद्र ) और हरि ( वासुदेव ) उत्पन्न हुए। श्रीवर्मा और विभीषण नामके हम दोनों यौवनको प्राप्त हुए । हम दोनों भाइयोंका अभिषेक कर एवं विजयलक्ष्मीको सखो मही हमें देकर पिता सुधर्म मुनिको शरणमें चले गये और उन्होंने घोर वीर तपश्चरण किया। उत्पत्ति जरा और मरणका उन्होंने नाश कर दिया, और सिद्धावस्थाको प्राप्त करानेवाला केवलज्ञान प्राप्त कर लिया । मेरो माता (मनोहरा) ने शीघ्र ही स्वर्णको तृणके समान समझ लिया। क्योंकि जो रागसे मुक्त है उसके लिए घर ही वन है । तथा नववधूके
२-१२